Friday 30 September 2016

एक देशगान -आज दिवस है सेनाओं के साहस के जयगान का

चित्र -गूगल से साभार 
यह समय भारतीय विदेश नीति में बदलाव का समय है इसका श्रेय हमारे कर्मठ प्रधानमन्त्री मोदी जी को जाता है जिन्होंने थकी हुई भारतीय विदेश नीति को रक्षात्मक से आक्रामक बना दिया |आज यह समय की जरूरत है |यह समय है भारतीय सेनाओं के शौर्य और अनुशासन के यशोगान का |मित्रों युद्ध कभी अच्छा नहीं होता लेकिन एकतरफा प्रेम और अधिक खतरनाक होता है |हमारे देश ने पड़ोसी देशों को छोटे भाई की निगाह से देखा लेकिन छोटे भाई ने हमेशा विश्वासघात किया | जय हिन्द जय भारत 


चित्र -गूगल से साभार 

एक देशगान -आज दिवस है सेनाओं के साहस के जयगान का 
खौल रहा है खून 
बुद्ध की धरती हिन्दुस्तान का |
हुक्का -पानी बन्द करो 
मोदी जी  पाकिस्तान का |

हमने जितनी भी कोशिश की 
सबकी सब बेकार गई ,
रावलपिंडी की मक्कारी से 
मानवता हार गई ,
चीख रहा है बच्चा -बच्चा 
आज बलूचिस्तान का |

चक्र सुदर्शन वाले हैं हम 
मत समझो गुब्बारे हैं ,
माथा ठनका तो  
दुश्मन को उसके घर में मारे हैं 
आज दिवस है सेनाओं के 
साहस के जयगान का |

खतरे में जिसका वजूद  
वह देश हमें धमकाता है ,
अब सुनो कराची कान खोल 
माँ काली भारत माता है ,
सदियों से युग देख 
रहा है साहस हिंदुस्तान का |

नहीं खिलौने देते  बच्चों को 
बन्दूक थमाते हैं  ,
एक  पड़ोसी जहाँ रोज 
आतंकी पाले जाते हैं  ,
हर प्यासे को स्वप्न बेचते 
केवल नखलिस्तान का |

चित्र -गूगल से साभार 

Thursday 29 September 2016

एक गीत -यह ऋषियों की भूमि -तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर


चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -यह ऋषियों की भूमि
 [तपोभूमि उत्तराखण्ड की महिमा पर ]
[यह गीत बहुत पहले पोस्ट किया था दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ ,सादर ]

यह ऋषियों की भूमि 
यहाँ की कथा निराली है |
गंगा की जलधार यहाँ 
सोने की प्याली है |

हरिद्वार ,कनखल ,बद्री 
केदार यहीं मिलते ,
फूलों की घाटी में मोहक 
फूल यहीं खिलते ,
नीलकंठ पर्वत की 
कैसी छवि सोनाली है |

शिवजी की ससुराल 
यहीं पर मुनि की रेती है ,
दक्ष यज्ञ की कथा 
समय को शिक्षा देती है ,
मंशा देवी यहीं ,यहीं 
माँ शेरावाली है |

हर की पैड़ी जलधारों में 
दीप जलाती है ,
गंगोत्री ,यमुनोत्री 
अपने धाम बुलाती है ,
हेमकुंड है यहीं 
मसूरी और भवाली है |

पर्वत -घाटी झील 
पहाड़ी धुन में गाते हैं ,
देव -यक्ष ,गंधर्व 
इन्हीं की कथा सुनाते हैं ,
कहीं कुमाऊँ और कहीं 
हँसता गढ़वाली है |

लक्ष्मण झूला ,शिवानन्द की 
इसमें छाया है ,
शांति कुञ्ज में शांति 
यहाँ ईश्वर की माया है ,
यहीं कहीं पर कुटिया 
काली कमली वाली है |

उत्सवजीवी लोग यहाँ 
मृदु भाषा बोली है ,
यह धरती का स्वर्ग यहाँ 
हर रंग -रंगोली है ,
देवदार चीड़ों के वन 
कैसी हरियाली है |
चित्र -गूगल से साभार 

Friday 23 September 2016

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी



पेंटिंग्स गूगल से साभार 

एक गीत -गीत नहीं मरता है साथी 
गीत नहीं 
मरता है साथी 
लोकरंग में रहता है |
जैसे कल कल 
झरना बहता 
वैसे ही यह बहता है |

खेतों में ,फूलों में 
कोहबर 
दालानों में हँसता है ,
गीत यही 
गोकुल ,बरसाने 
वृन्दावन में बसता है , 
हर मौसम की 
मार नदी के 
मछुआरों सा सहता है |

इसको गाती 
तीजनबाई 
भीमसेन भी गाता है ,
विद्यापति 
तुलसी ,मीरा से 
इसका रिश्ता नाता है ,
यह कबीर की 
साखी के संग 
लिए लुकाठी रहता है |

यही गीत था 
जिसे जांत के-
संग बैठ माँ गाती थी ,
इसी गीत से 
सुख -दुःख वाली 
चिट्ठी -पत्री आती थी ,
इसी गीत से 
ऋतुओं का भी 
रंग सुहाना रहता है |

सदा प्रेम के 
संग रहा पर 
युद्ध भूमि भी जीता है ,
वेदों का है 
उत्स इसी से 
यह रामायण, गीता है ,
बिना शपथ के 
बिना कसम के 
यह केवल सच कहता है |
पेंटिंग्स गूगल से साभार 

Monday 12 September 2016

एक गीत- माहेश्वर तिवारी जी के लिए -उसका होना उज्जयिनी में कालिदास के होने जैसा


वरिष्ठ हिंदी गीत कवि -श्री माहेश्वर तिवारी 



वरिष्ठ गीत कवि  आदरणीय  माहेश्वर तिवारी जी के लिए जिन्हें बीमारी के बाद नया जीवन मिला है अब स्वस्थ होकर घर पर आ गये हैं -शतायु होने की शुभकामनाओं के साथ 

माहेश्वर तिवारी जी के लिए एक गीत -
उसका होना उज्जयिनी में कालिदास के होने जैसा 

फूलों सा 
मुरझा करके भी 
लौटा जो वह गीतकार है |
उसका हँसना 
छन्द सरीखा 
उसका लिखना चमत्कार है |

पीतल की 
नगरी में रहकर 
जिसका दिल है सोने जैसा ,
उसका होना 
उज्जयिनी में 
कालिदास के होने जैसा ,
सब ऋतुओं का 
रंग समेटे 
मेघदूत की वह पुकार है |

उसकी कलम 
कनेरों वाली 
शब्दों में जादुई छुवन है ,
कविता के 
निःस्सीम क्षितिज पर 
इन्द्रधनुष सा उसका मन है |
गीतों को भी 
वह प्यारा है 
उसे गीत से बहुत प्यार है |

सोंधी मिटटी का 
माहेश्वर 
हिम शिखरों का नहीं पुजारी ,
वह बसंत के 
फूलों जैसा 
उसका घर फूलों की क्यारी ,
कवि शतायु 
तक लिखते जाना 
जीवन गीतों का उधार है |
कनेर के फूल 

Sunday 4 September 2016

महान कवयित्री महादेवी वर्मा के दुर्लभ चित्रों के साथ उनकी कवितायेँ


महादेवी वर्मा का दुर्लभ ममतामयी चित्र -सौजन्य यश मालवीय
भाई यश मालवीय की पत्नी की शादी महादेवी ने अपनी बेटी
मानकर किया था आरती मालवीय का बचपन उन्हीं के सानिध्य में बीता
यश की शादी में उन्हें आशीष देती हुई महादेवी जी
[महादेवी जी की कोई संतान नहीं थी अकेले रहती थी उनकी देखरेख गंगा प्रसाद पांडे
और बाद में रामजी पांडे जी करते रहे जो यश जी के ससुर थे ]



कवयित्री -महादेवी वर्मा रामजी पाण्डेय की पत्नी ,बेटी आरती मालवीय के साथ 
यह मन्दिर का दीप ....
इसे नीरव जलने दो ----महादेवी वर्मा 
महदेवी के साथ महाप्राण निराला की दुर्लभ फोटो दायें से प्रथम निराला उनके बगल में
महादेवी वर्मा 

छायावाद की महान कवयित्री महादेवी वर्मा और उनका रचना संसार 
एक 
.यह मन्दिर का दीप ..
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो !

रजत शंख -घड़ियाल स्वर्ण वंशी -वीणा -स्वर 
गये आरती बेला को शत -शत लय से भर 
जब था कलकंठों का मेला 
विहँसे उपल तिमिर था खेला 
अब मन्दिर में इष्ट अकेला 
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो !

चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली 
प्रणत शिरों के अंक लिए चंदन की दहली 
झरे सुमन बिखरे अक्षत सित 
धूप -अर्ध्य नैवेद्य अपरिमित 
तम में सब होंगे अन्तर्हित 
सब की अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो !

पलके मनके फेर पुजारी विश्व सो गया 
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया 
सांसों की समाधि सा जीवन 
मणि सागर सा पंथ बन गया 
रुका मुखर कण -कण का स्पन्दन 
इस ज्वाला में प्राण -रूप फिर से ढलने दो !

झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्च्छा गहरी 
आज पुजारी बने ,ज्योति का यह लघु प्रहरी 
जब तक लौटे दिन की हलचल 
तब तक यह जागेगा प्रतिपल 
रेखाओं में भर आभा -जल 
दूत साँझ का इसे प्रभाती तक चलने दो !
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो !
दो 
पंथ होने दो अपरिचित 
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला 

घेर ले छाया अमा बन 
आज कज्जल -अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन 
और होंगे नयन सूखे 
तिल बुझे औ 'पलक रूखे 
आर्द्र चितवन में यहाँ 
शत विद्युतों में दीप खेला !
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला !

अन्य होंगे चरण हारे 
और हैं जो लौटते ,दे शूल को संकल्प सारे 
दुःखव्रती निर्माण उन्मद 
यह अमरता नापते पद 
बांध देंगे अंक -संसृति 
से तिमिर में स्वर्ण बेला !

दूसरी होगी कहानी 
शून्य में जिसके मिटे स्वर ,धूलि में खोयी निशानी 
आज जिस पर प्रलय विस्मित 
मैं लगाती चल रही नित 
मोतियों की हाट औ '
चिनगारियों का एक मेला !

हास का मधु-दूत भेजो 
रोष की भ्रू -भंगिमा पतझार को चाहो सहेजो !
ले मिलेगा उर अचंचल 
वेदना -जल ,स्वप्न शतदल 
जान लो यह मिलन एकाकी 
विरह में है अकेला !

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला
तीन 
रूपसि तेरा घन केश -पाश !
श्यामल श्यामल कोमल कोमल ,
लहराता सुरभित केश -पाश !

नभ -गंगा की रजत धार में ,
धो आयी क्या इन्हें रात ?
कम्पित हैं तेरे सजल अंग ,
सिहरा सा तन है सद्यस्नात !
भींगी अलकों के छोरों से 
चूतीं बूंदे कर विविध लास !
रूपसि तेरा घन -केश -पाश !

सौरभ भीना झीना गीला 
लिपटा मृदु अंजन सा दुकूल ,
चल अंचल से झर -झर झरते 
पथ में जुगनू के स्वर्ण फूल :
दीपक से देता बार -बार 
तेरा उज्ज्वल चितवन विलास !
रूपसि तेरा घन -केश -पाश !

उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल है 
वक पोतों का अरविन्द हार :
तेरी निश्वासें छू भू को 
बन बन जातीं मलयज बयार :
केकी रव की नूपुर -ध्वनि सुन 
जगती जगती की मूक प्यास 
रूपसि तेरा घन -केश -पाश !

इन स्निग्ध लटों से छा दे तन 
पुलकित अंकों में भर विशाल :
झुक सस्मित शीतल चुम्बन से 
अंकित कर इसका मृदुल भाल :
दुलरा दे ना बहला दे ना 
यह तेरा शिशु जग है उदास !
रूपसि तेरा घन -केश -पाश !
चार 
मैं बनी मधुमास आली !
आज मधुर विषाद की घिर करुण आयी यामिनी :
बरस सुधि के इन्दु से छिटकी पुलक की चाँदनी 
उमड़ आयी री दृगों में 
सजनि कालिन्दी निराली !

रजत -स्वप्नों में उदित अपलक विरल तारावली :
जाग सुख -पिक ने अचानक मदिर पंचम तान ली :
बह चली निश्वास की मृदु 
वात मलय -निकुंज पाली !

सजल रोमों में बिछे हैं पांवड़े मधु स्नात से :
आज जीवन के निमिष भी दूत हैं अज्ञात से :
क्या न अब प्रिय की बजेगी 
मुरलिका मधु -रागवाली ?

मैं बनी मधुमास आली !

पांच 
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ !

नींद थी मेरी अचल निस्पन्द कण -कण में ,
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पन्दन में ,
प्रलय में मेरा पता पदचिन्ह जीवन में ,
शाप हूँ जो बन गया वरदान बन्धन में :
कुल भी हूँ कुलहीन प्रवाहिनी भी हूँ !

नयन में जिसके जलद वह तृषित चातक हूँ ,
शलभ जिसके प्राण में वह निठुर दीपक हूँ ,
फूल को उर में छिपाये विकल बुलबुल हूँ ,
दूर तुमसे हूँ अखण्ड सुहागिनी भी हूँ !

आग हूँ जिसमें ढुलकते विन्दु हिमजल के ,
शून्य हूँ जिसको बिछे हैं पांवड़े पल के ,
पुलक हूँ वह जो पल कठिन प्रस्तर में ,
हूँ वही प्रतिबिम्ब जो आचार के उर में ,
नील घन भी हूँ सुनहली दामिनी भी हूँ !

नाश भी हूँ मैं अनन्त विकास का क्रम भी ,
त्याग का दिन भी चरम आसक्ति का तम भी ,
तार भी आघात भी झंकार की गति भी ,
पात्र भी मधु भी मधुप भी मधुर विस्मृत भी ,
अधर भी हूँ और स्मित की चाँदनी भी हूँ !

छः 
किस सुधि -वसन्त का सुमन तीर ,
कर गया मुग्ध मानस अधीर ?

वेदना गगन से रजत ओस ,
चू -चू भरती मन -कंज -कोष ,
अलि -सी मंडराती विरह -पीर |

मंजरित नवल मृदु देह डाल ,
खिल -खिल उठता नव पुलक -जाल ,
मधु कन सा छलका नयन -नीर |

अधरों से झरता स्मित पराग ,
प्राणों में गूंजा नेह -राग ,
सुख का बहता मलयज समीर |

धुल -धुल जाता यह हिम -दुराव 
गा -गा उठते चिर मूक -भाव ,
अलि सिहर -सिहर उठता शरीर |
सात -महादेवी वर्मा की हस्तलिपि गद्य रूप में 

ममतामयी महादेवी -कवि यश मालवीय के ज्येष्ठ पुत्र
सौम्य मालवीय को गोद में लिए महादेवी वर्मा 

परिचय -
महादेवी वर्मा छायावाद की महत्वपूर्ण कवयित्री हैं | छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ हैं प्रसाद ,पन्त ,निराला और महादेवी वर्मा | महादेवी वर्मा का जन्म होली के पावन पर्व पर 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में हुआ था | इस महान कवयित्री का निधन 11 सितम्बर 1987 को इलाहाबाद में हुआ था | बाल विवाह बचपन में हुआ था लेकिन महादेवी ने आजीवन अविवाहित जीवन व्यतीत किया | महादेवी वर्मा गद्य और पद्य दोनों में समान रूप से लोकप्रिय हैं ,हालाँकि उनका गद्य पद्य से भी उत्कृष्ट है | महादेवी वर्मा पूरे  हिंदी जगत में जानी और पहचानी जाती हैं इसलिए हम केवल उनकी दुर्लभ हस्तलिपि कुछ चित्र और कुछ कविताएँ यहाँ दे रहे हैं | होली के दिन महादेवी का जन्म हुआ था और होली उनके अशोक नगर आवास [इलाहाबाद ] पर धूमधाम के साथ मनाई भी जाती थी जिसमें शामिल होना लोग अपना सौभाग्य समझते थे | महादेवी ने रेखाचित्र ,संस्मरण ,निबंध और कविता सभी में सामान लेखन किया है | आज भी अशोक नगर में महादेवी वर्मा का आवास है जहाँ उनके सचिव गंगा प्रसाद पांडे का परिवार रहता है |यही परिवार आजीवन महादेवी वर्मा की देखभाल करता रहा है | गंगा प्रसाद पांडे के पुत्र रामजी पांडे की सुपुत्री आरती मालवीय को महादेवी  बेटी की तरह  प्यार करती थीं , और सुप्रसिद्ध गीत कवि यश मालवीय से उनका विवाह स्वयं महादेवी वर्मा ने सम्पन्न कराया था |महादेवी कुशल चित्रकार भी थीं |महादेवी वर्मा  प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्य थीं | पुरस्कार सम्मान -मंगला प्रसाद पारितोषिक ,भारत भारती ,पद्म विभूषण ,भारतीय ज्ञानपीठ ,उत्तर प्रदेश विधान सभा में नामित सदस्य और साहित्य अकादमी की प्रथम महिला सदस्य | प्रमुख कृतियाँ -गद्य -अतीत के चलचित्र ,श्रृंखला की कड़ियाँ ,स्मृति की रेखाएं ,पथ के साथी ,क्षणदा ,काव्य कृतियाँ -नीहार ,नीरजा ,सांध्यगीत ,दीपशिखा आदि |

विशेष -इस पोस्ट में शामिल चित्र ,हस्तलिपि हमें महादेवी वर्मा न्यास के सचिव ब्रजेश पांडे ने उपलब्ध कराया है | हम श्री पांडे जी के प्रति आभार प्रकट करते हैं | इन चित्रों और हस्तलिपियों का उपयोग बिना लेखक और ब्रजेश पांडे जी की लिखित अनुमति के वर्जित है |

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...