Sunday 28 February 2021

एक ग़ज़ल-यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का

 

चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल-

यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का


अब कोई पत्थर नहीं दिखता पुराना मील का

जब से जारी हो गया नक्शा नई तहसील का


राम की इच्छा हो तो पानी पे पत्थर तैरते

शाप था वरदान कैसे हो गया नल-नील का


वक्त पर फिर से युधिष्टिर आ गए अच्छा हुआ

यक्ष प्रश्नों से भरा था जल तुम्हारी झील का


इन अँधेरों की भयावहता क्षणिक है मत डरो

नष्ट कर देगा इन्हें आलोक इक कंदील का


मेरी उसके साथ में तस्वीर चर्चाओं में है

शुक्रिया उसका कहूँ या कैमरे की रील का


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -आईना हूँ सच कह दूँ तो नाराज़ न होना

 


चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -

आईना हूँ सच कह  दूँ तो नाराज़ न होना 


ऐ हुस्न की मलिका कभी 'मुमताज़ 'न होना 

दुनिया का तमाशा हो तो ये ताज़ न होना 


सब अपनी मोहब्बत का फ़साना लिए बैठे 

अब ऐसे फ़सानों का तू हमराज़ न होना 


अब राजा प्रतिज्ञा में न वनवास कभी दे 

अब मेरी अयोध्या कभी बेताज न होना 


ये सारे कसीदागो क़सीदा ही पढ़ेंगे 

आईना हूँ सच कह दूँ तो नाराज़ न होना 


आकाश में उड़कर के इसी नीड़ में आना 

जो खत्म न हो ऐसी भी परवाज़ न होना 


कुछ कहना है कुछ सुनना भी बरसों पे मिले हैं 

अब लाज-शरम, चुप्पी का कोलाज न होना


तुलसी, ये नए फूल सहन में ही लगा दो 

पूजा के लिए माली का मोहताज़ न होना 


जयकृष्ण राय तुषार 

ताजमहल -चित्र साभार गूगल 


Saturday 27 February 2021

एक ग़ज़ल -पहाड़ों में कोई रस्ता कहाँ आसान दिखता है

 

चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

पहाड़ों में कोई रस्ता कहाँ आसान दिखता है 

वहीं पर बाढ़ आती है जहाँ मैदान दिखता है 


तरक्की की कुल्हाड़ी ने हजारों  पेड़ काटे हैं 

जरूरत को कहाँ कोई नफ़ा -नुकसान दिखता है 


तुम्हारा जन्मदिन है आज ये झुमके पहन लेना 

भले तुम चाँदनी हो पर ये सूना कान दिखता है 


शहर में पत्थरों के घर फलों के पेड़ कितने हैं 

परिंदा घूमने आया है पर हैरान दिखता है 


पिकासो की कला हो या मोहब्बत का हो अफ़साना 

तुम्हारी शोखियों में मीर का दीवान दिखता है 


ये ड्राइंग रूम तो केवल नफ़ासत और दिखावा है 

जरूरत का नहीं है जो, वही सामान दिखता है 


वही है देश की सेवा जो कीमत के बिना होती 

बदलते दौर में सेवा में बस अनुदान दिखता है 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 


Friday 26 February 2021

एक ग़ज़ल -मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना

 

चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -

मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना

मोहब्बत भी नशा इसको न मजबूरी बना लेना  

अँगीठी तेज हो जाए तो कुछ दूरी बना लेना 


तुम्हारे साथ मिलकर मैं यमन का राग गाऊँगा 

अभी से शाम का मंज़र ये सिंदूरी बना लेना 


तवे की रोटियों का स्वाद ढाबों में नहीं मिलता 

मगर जब भूख हो  रोटी को तन्दूरी बना लेना 


ये जंगल ,आग ,बारिश ,धूप ,आँधी से है बाबस्ता 

यहाँ जब सैर करना खुद को कस्तूरी बना लेना 


जिसे मैं ख़्वाब में देखा उसे वैसा ही रहने दो 

तुम अपने चित्र में इस दौर की नूरी बना लेना 


नशे की  बोतलों को अलमारी में सजाना मत 

जरूरी हो तो अपने लब को अंगूरी बना लेना 


समन्दर की तहों में यदि तुम्हें भी शोध करना है 

समन्दर के किनारों से अभी दूरी बना लेना 

जयकृष्ण राय तुषार 


चित्र -साभार गूगल 




Thursday 25 February 2021

एक ग़ज़ल-धर्मग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल


कुछ हुनर कुछ दुश्मनों से धन मिला ख़ैरात का

हर गली धरना,प्रदर्शन चल रहा हज़रात का


बादलों में छिपके जो दिन में अँधेरा कर गया

वह भी सूरज आसमानी था मगर बरसात का


कैक्टस से इस क़दर हमको मोहब्बत हो गई

धर्म ग्रन्थों में ही किस्सा रह गया परिजात का


आजकल सब भीड़ में शामिल हुए जाते हैं बस

पूछते भी हैं नहीं जलसा यहाँ किस बात का


तर्क से मिल बैठ के मसलों का हल होता रहे

अब तमाशा बन्द होना चाहिए उत्पात का


लोकशाही को भी संजीदा बनाना चाहिए

दर्द उसको भी समझना चाहिए सुकरात का


एक ही भाषण सियासत जेब में रखती रही

पुल का उद्घाटन हो या जलसा किसी बारात का

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल
परिजात



जयकृष्ण राय तुषार

Wednesday 24 February 2021

एक ग़ज़ल-दिन के रहते हुए मैं शाम सा ढल सकता हूँ

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

उड़ भी सकता हूँ मैं पानी पे भी चल सकता हूँ

सिद्ध हूँ ख़्वाब हक़ीकत में बदल सकता हूँ


कुछ भी मेरा हैं कहाँ घर नहीं असबाब नहीं

जब भी वो कह दे मैं घर छोड़ के चल सकता हूँ


पानियों पर मुझे मन्दिर में या घर में रख दो

मैं तो मिट्टी का दिया हूँ कहीं जल सकता हूँ


शौक मेरा था कहाँ पाँव में चुभता हूँ मगर

एक काँटा हूँ कहाँ फूल सा खिल सकता हूँ


मैं भी सूरज हूँ मगर कृष्ण के द्वापर वाला

दिन के रहते हुए भी शाम सा ढल सकता हूँ

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Sunday 21 February 2021

एक गीत-नीड़ तो मैं टहनियों पर ही बनाऊँगा

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत-नीड़ तो मैं टहनियों पर ही बनाऊँगा


नीड़ तो मैं

टहनियों पर

ही बनाऊँगा ।

गीत

लेकिन सिर्फ़

माटी के सुनाऊँगा ।


हम परिंदे

आग और

तूफ़ान से खेले,

बाज के

पंजे

हवा के बीच में झेले,

वक्त की

हर चोट पर

मरहम लगाऊँगा ।


छाँह मिलनी

चाहिए

रेतों, पठारों को,

चाहिए

कितना हरापन

हरसिंगारों को,

देखना

मैं धूप को

दरपन दिखाऊँगा ।


युगों से

भटका हुआ

मन चाँद-तारों में,

है असल

संजीवनी

चीड़ों-चिनारों में,

स्वप्न में 

परियाँ नहीं

तुमको बुलाऊँगा ।

कवि जयकृष्ण राय तुषार


चित्र साभार गूगल



कवि जयकृष्ण राय तुषार

एक प्रेमगीत-बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर

 

चित्र साभार गूगल

एक प्रेम गीत-बाँसुरी मैं छोड़ दूँगा गीत अधरों पर सजाकर


आलमारी में

कहीं फिर

भागवत रख दो सजाकर ।

पास में 

बैठो हमारे 

नेह का कम्बल बिछाकर ।


ये कुशा

गंगाजली रख दो

न कोई मंत्र बोलो ,

धूम्र से 

निकलो हवन के

स्वप्नदर्शी नयन खोलो,

काटना

फिर से चिकोटी

और छिप जाना लजाकर ।


टकटकी

बाँधे हुए मौसम

गगन में चाँदनी है,

पास में

गुलमोहरों के

फूल,पेंटिंग मधुबनी है,

चलो छत पर

टहल आएं

नींद में शिशु को सुलाकर ।


डायरी के

पृष्ठ खोलो

सप्त सुर के पाठ वाले,

इन्हीं शब्दों

से खुलेंगे

सभी धागे गाँठ वाले,

बाँसुरी मैं

छोड़ दूँगा

गीत अधरों पर सजाकर ।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Wednesday 17 February 2021

एक ग़ज़ल- बुजुर्गों से अदब के साथ मिलना चाहिए हमको

 

चित्र -साभार गूगल 

एक ग़ज़ल- बुजुर्गों से अदब के साथ मिलना चाहिए हमको हरे पत्ते,महकते फूल ये मौसम सुहाना है यहाँ खुशबू के होठों पर तितलियों का ठिकाना है मैं उसके हाथ से तस्वीर उसकी छीन लाया हूँ सलीके से उसे अपनी किताबों में छिपाना है हरे नाखून,आँखें झील सी चंदन का टीका है सुना कल से उसे मेरे सहन से आना-जाना है वो मिलना चाहती मुझसे मुझे भी फ़िक्र है उसकी न मिलने की क़सम उसकी,उसे भी तो निभाना है तुम्हारी हो कोई मन्नत तो धागा बाँध कर जाना दुआ देता ये पीपल और ये बरगद पुराना है कभी दहलीज़ से बाहर निकलने पर थी पाबन्दी बदलते दौर में अब बेटियों का ही ज़माना है बुज़ुर्गों से अदब के साथ मिलना चाहिए हमको हमें भी एक दिन चलकर इसी रस्ते पे आना है लहर ढूँढो नहीं यमुना की तुम सरयू के पानी में

तुम अपनी बाँसुरी रख दो ये ठुमरी का घराना है जो छाता लेके चलता था उसे अब धूप की चाहत उसे सावन के मौसम में कोई कपड़ा सुखाना है ये नाटक खूबसूरत है इसे बस देखिए साहब हमें मालूम है कि कब हमें पर्दा गिराना है कवि/शायर - जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल पद्मश्री गिरिजा देवी 


एक ग़ज़ल -मढ़ेंगे किस तरह भारत की हम तस्वीर सोने में

 

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -

मढ़ेंगे किस तरह इस मुल्क की तस्वीर सोने में 


मढ़ेंगे किस तरह भारत की हम तस्वीर सोने में 

लगे हैं मुल्क के गद्दार सब जादू औ टोने में 


यहाँ हड़ताल और धरना भी प्रायोजित विदेशों से 

पड़ोसी मुल्क से आती है बिरयानी भगोने में 


सफ़र में हम चले जब से अपशकुन हो रहे हर दिन 

बड़ी गहरी है साज़िश टूल किट बिल्ली के रोने में 


जो दरिया पी गए ,पानी का कतरा भी नहीं छोड़े 

वही मल्लाह शामिल हैं नयी कश्ती डुबोने में 


कई धृतराष्ट्र ,संजय ,शकुनि फिर  पासे लिए बैठे 

कोई अख़बार ,चैनल और कोई टी0वी0 के कोने में 


बहुत मुश्किल से कोई एक पृथ्वी राज होता है 

सियासत में लगे फिर से कई जयचंद  होने में 


वतन को लूटने वालों के घर  चाँदी के बर्तन हैं 

वतन पर मरने वाले खाते हैं पत्तल औ दोने में 


मिली केसर की खुशबू धुन्ध में खोये चिनारों को 

जहाँ मौसम भी शामिल था कभी काँटों को बोने में 

कवि /शायर -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 



Monday 15 February 2021

एक गीत -अबकी शाखों पर वसंत तुम

सर्वप्रथम मेरा यह गीत नवनीत में आदरणीय श्री विश्वनाथ सचदेव जी ने प्रकाशित किया था |फिर मेरे गीत संग्रह में प्रकाशित हुआ |अभी हाल में फरवरी अंक में इंदौर से प्रकाशित वीणा में यह प्रकाशित है | 

 

चित्र -साभार गूगल 


अबकी शाखों पर वसंत तुम 

एक गीत -

अबकी शाखों पर 

वसंत तुम 

फूल नहीं रोटियाँ खिलाना |

युगों -युगों से 

प्यासे होठों को 

अपना मकरंद पिलाना |


धूसर मिट्टी की 

महिमा पर 

कालजयी कविताएं लिखना ,

राजभवन 

जाने से पहले

होरी के आँगन में दिखना ,


सूखी टहनी 

पीले पत्तों पर 

मत अपना रौब जमाना |


जंगल ,खेतों 

और पठारों को 

मोहक हरियाली देना ,

बच्चों को 

अनकही कहानी 

फूल -तितलियों वाली देना ,

चिंगारी -लू 

लपटों वाला 

मौसम अपने  साथ न लाना |


सुनो दिहाड़ी 

मज़दूरिन को 

फूलों के गुलदस्ते देना ,

बंद गली 

फिर राह न रोके 

खुली सड़क चौरस्ते देना ,

साँझ ढले 

स्लम की देहरी पर 

उम्मीदों के दिए जलाना |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -गूगल से साभार 

Sunday 14 February 2021

एक ग़ज़ल -लिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता है

 

चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -
लिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता है

कोई राँझा-हीर तो कोई राधा रानी लिखता है
लिखने वाला अपने मन की प्रेम कहानी लिखता है

मीरा को भी सबने देखा अपनी-अपनी नज़रों से
कोई कहता जोगन कोई प्रेम दीवानी लिखता है

सब अपनी तकरीर में केवल बात विदेशी करते हैं
एक है तुलसीदास जो अपनी बोली-बानी लिखता है

हम दरिया के पास में बैठे कंकड़ पत्थर फेंक रहे
रेत में चलने वाला अपनी आँख में पानी लिखता है

जीवन के हर मोड़ पे अपना प्यार बदलता जाता है
सबसे पहले ख़त में बच्चा नाना-नानी लिखता है

कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल 


Saturday 13 February 2021

एक ग़ज़ल-ये गंगा माँ निमन्त्रण के बिना सबको बुलाती है

 


चित्र -साभार गूगल 


एक ग़ज़ल-

हमारी आस्था चिड़ियों को भी दाना खिलाती है


गले में क्रॉस पहने है मगर चन्दन लगाती है

सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है


ये नाटक था यहाँ तक आ गए कैसे ये मायावी

सुपर्णखा बनके जैसे राम को जोगन रिझाती है


कोई बजरे पे कोई रेत में धँसकर नहाता है

ये गंगा माँ निमन्त्रण के बिना सबको बुलाती है


सनातन संस्कृति कितनी निराली और पुरानी है

हमारी आस्था चिड़ियों को भी दाना खिलाती है


खिलौने आ गए बाजार से लेकिन हुनर का क्या

मेरी बेटी कहाँ अब शौक से गुड़िया बनाती है


वो राजा क्या बनेगा अश्व की टापों से डरता है

उसे दासी महल में शेर का किस्सा सुनाती है


ये हाथों की सफ़ाई है इसे जादू भी कहते हैं

नज़र से देखने वालों को यह अन्धा बनाती है


खिले हैं फूल जब तक तितलियों से बात मत करना

जरूरत पेड़ से गिरते हुए पत्ते उठाती है


कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

Thursday 11 February 2021

एक ग़ज़ल-आज के दुष्यन्त को सब स्मरण हो जाएगा

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

स्वर्ग सा इस देश का वातावरण हो जाएगा


छल, कपट,और लोभ का यदि संवरण हो जाएगा

स्वर्ग सा इस देश का वातावरण हो जाएगा


प्रकृति का सौंदर्य कम कर आपने सोचा कभी

बाँध से नदियों के जल का अपहरण हो जाएगा


पंचवटियों में नया सोने का मृग फिर भेजकर

वह बहुत खुश था कि फिर सीताहरण हो जाएगा


तोतली भाषा है बच्चे की अभी मत टोकिए

कल यही  पाणिनि का सुन्दर व्याकरण हो जाएगा


आप अब तक पढ़ रहे दुष्यन्त का "साये में धूप"

कल हमारा शेर सबका उद्धरण हो जाएगा


झील,पर्वत,वन,नदी,बादल की पूजा कीजिए

फिर से धरती का सुखद वातावरण हो जाएगा


अब न राजा,ऋषि, न अँगूठी न शाकुन्तल वही

आज के दुष्यन्त को सब स्मरण हो जाएगा


जब कभी आतंक असुरों का बढ़ेगा देखना

राम या तो कृष्ण का फिर अवतरण हो जाएगा


आप पश्चिम के ही दर्शन में अगर डूबे रहे

वेद,गीता,उपनिषद का विस्मरण हो जाएगा


आप मानेंगे अगर अपने बुजुर्गों की सलाह

आपकी भी बात का कल अनुसरण हो जाएगा


कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र -साभार गूगल 


Monday 8 February 2021

एक प्रेमगीत-झुकी नज़रें गुलमोहर ,मुस्कान वाले दिन

 

चित्र-साभार गूगल

एक प्रेमगीत-

चिट्ठियाँ पढ़ते हुए सुनसान वाले दिन


झुकीं नज़रें

गुलमोहर

मुस्कान वाले दिन ।

याद हैं

अब भी 

मुलेठी पान वाले दिन।


पुस्तकों के

बीच में

तस्वीर रखकर देखना,

राह चलते

आदमी पर

एक कंकड़ फेंकना,

चिट्ठियाँ

पढ़ते हुए

सुनसान वाले दिन ।


आईने को

देखकर

हँसना स्वगत रोना,

मेज पर ही

सिर टिकाकर

देर तक सोना,

याद हैं

सहगल,रफ़ी

अनजान वाले दिन ।


टूटते तारे

हवा में

चाँदनी रातें,

बिना बोले

खिड़कियाँ

करती रहीं बातें,

माँ की

चिन्ताएं, नज़र

लोबान वाले दिन ।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल-माँ का वह चूल्हा-धुँआ हर शाम होना चाहिए

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

माँ का वह चूल्हा-धुँआ हर शाम होना चाहिए


इश्क़ के आगाज़ का अंजाम होना चाहिए 

हर बड़े शायर को कुछ बदनाम होना चाहिए


शायरी में इश्क़ ,खुशबू,हुस्न की बातें थीं कल

अब ग़ज़ल में कुछ सबक,पैग़ाम होना चाहिए


बाद मरने के, लबों पर हैं निराला और मज़ाज

कुछ तो जिंदा शायरों पे काम होना चाहिए


प्रेम भी जीवन का दर्शन है मगर इक शर्त पर

इसमें राधा,गोपियाँ,इक श्याम होना चाहिए


हर किले में दर्ज है शाहों,महाराजों के नाम

दर्ज तो कारीगरों का नाम होना चाहिए


घी, नमक,रोटी खिला देती थी अक्सर प्यार से

माँ का वह चूल्हा,धुँआ, हर शाम होना चाहिए


कैक्टस,गमले हरेक घर में,कटे पुरखों के पेड़

वन में कुछ हो, बाग़ में तो आम होना चाहिए

कवि /शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


कवि/ शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

Sunday 7 February 2021

एक गीत-नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ

 

बुरांस

एक गीत-

नदियों में कंचन मृग सुबहें वो शाम कहाँ


नदियों में

कंचन मृग 

सुबहें वो शाम कहाँ ?

धुन्ध की

किताबों में

सूरज का नाम कहाँ ?


दुःख की

छायाएं हैं

पेड़ों के आस-पास,

फूल,गंध

बासी है

शहरों का मन उदास,

सिर थामे

बैठा दिन

ढूंढेगा बाम कहाँ ?


अल्मोड़ा

कौसानी

हाँफती मसूरी है,

प्यार भरा

रिश्ता भी

प्रकृति से जरूरी है,

पंचवटी में

आये फिर

जटायु,राम कहाँ ?


शिलाखण्ड

टूट रहे

अनगिन विस्फोटों से,

हिमगिरि

के मुखमण्डल

भरे हुए चोटों से,

इन बुरांस

फूलों  का दर्द 

पढ़े पाम कहाँ ? 


कवि जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल



Saturday 6 February 2021

देवगंगा हो हमारी या तुम्हारी नर्मदा हो

 

काशी गंगा घाट

एक गीत-

देवगंगा हो हमारी या तुम्हारी नर्मदा हो


देव गंगा हो 

हमारी या

तुम्हारी नर्मदा हो ।

घाट पर

उत्सव मनाती

संस्कृति यह सर्वदा हो ।


कुम्भ ,छठ हो

या चतुर्थी

चौथ का जलता दिया हो,

पुण्य सबको

मिले चाहे

पत्र का वह हाशिया हो,

अमावस्या

पंचमी का 

चाँद हो या प्रतिपदा हो ।


सदानीरा को

बचाना है 

भगीरथ प्यार से,

स्वच्छता की

शपथ लें हम

आज ही हरिद्वार से,

उसे क्यों

धूमिल करें

जो देवकुल की सम्पदा हो।


रहे काशी

या त्रिवेणी

या होशंगाबाद हो,

हमें लौकिक

और वैदिक

मन्त्र तो कुछ याद हो,

विश्व का

मंगल करें

नदियाँ न कोई आपदा हो।

कवि-जयकृष्ण राय तुषार


सभी चित्र साभार गूगल




स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के लिए

  स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी  हिंदी गीत /नवगीत की सबसे मधुर वंशी अब  सुनने को नहीं मिलेगी. भवानी प्रसाद मिश्र से लेकर नई पीढ़ी के साथ काव्य पा...