चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -वो तो सूरज है
इन चरागों को तो आँचल से बुझा दे कोई
वो तो सूरज है जला देगा हवा दे कोई
मैं हिमालय हूँ तो चट्टानों से रिश्ता है मेरा
आम का फल नहीं पत्थर से गिरा दे कोई
माँ सी तस्वीर ये भारत की दिलों में सबके
चाहता है तू ये तस्वीर जला दे कोई
आग पी जाता हूँ सागर भी मैं सैलाब भी हूँ
सिरफ़िरा अब नहीं शोलों को हवा दे कोई
अब सियासत से सितारों को बचाना होगा
भींगते फूल सा मौसम को फ़ज़ा दे कोई
किसकी साजिश थी हरे वन को जला देने की
सूखते पेड़ को पत्ता अब हरा दे कोई
होंठ पर ठुमरी हो कव्वाली हो या प्रभु का भजन
शाम ख़ामोश है महफ़िल तो सजा दे कोई
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |