चित्र सभार गूगल |
एक गज़ल- तमाम यादों की ख़ुशबू
बिछड़ गया है वो लेकिन इसी ज़हान में है
तमाम यादों की ख़ुशबू अभी मकान में है
बहुत करीब से हँसकर किसी ने बात किया
जरा सी बात मोहब्बत की अब भी कान में है
तमाम चाँद नदी की लहर में पाँव धरे
कोई है काँजीवरम में कोई शिफ़ान में है
जो बात सादगी अपनी सलोनी मिट्टी में
नहीं सुकून वो पेरिस नहीं मिलान में है
अभी तो पंख खुले हैँ गिरेगा,सम्हलेगा
अभी जमीं पे परिंदा नई उड़ान में है
कोई कबीर कहीं हो तो उससे बात करें
यहाँ की सुबह तो कीर्तन में या अज़ान में है
चलो सुनाओ किसी की ग़ज़ल अदा से मगर
तमाम रंग की ख़ुशबू तुम्हारे पान में है
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
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