Saturday 30 April 2022

एक ग़ज़ल -तमाम चाँद नदी की लहर मे

 

चित्र सभार गूगल

एक गज़ल- तमाम यादों की ख़ुशबू


बिछड़ गया है वो लेकिन इसी ज़हान में है 

तमाम यादों की ख़ुशबू अभी मकान में है


बहुत करीब से हँसकर किसी ने बात किया

जरा सी बात मोहब्बत की अब भी कान में है


तमाम चाँद नदी की लहर में पाँव धरे

कोई है काँजीवरम में कोई शिफ़ान में है


जो बात सादगी अपनी सलोनी मिट्टी में

नहीं सुकून वो पेरिस नहीं मिलान में है


अभी तो पंख खुले हैँ गिरेगा,सम्हलेगा

अभी जमीं पे परिंदा नई उड़ान में है


कोई कबीर कहीं हो तो उससे बात करें

यहाँ की सुबह तो कीर्तन में या अज़ान में है


चलो सुनाओ किसी की ग़ज़ल अदा से मगर

तमाम रंग की ख़ुशबू तुम्हारे पान में है

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र सभार गूगल


Friday 29 April 2022

राष्ट्र के नाम एक ग़ज़ल -अब राम को बनवास अयोध्या न दे कभी

 

चित्र सभार गूगल

चित्र सभार गूगल


राष्ट्र को समर्पित एक ग़ज़ल -


हर लाइलाज मर्ज़ का अब तो निदान हो

सबके लिए समानता का संविधान हो


हिन्दु,मुसलमाँ, सिक्ख,ईसाई न हो कोई

पहले वो हिंदुस्तानी हो ऐसा विधान हो


सत्ता के लोभ में जो यहाँ मुल्क बेचते

उनके लिए फिर काला पानी अंडमान हो


इस देश को बचाइये मजहब की आग से

भारत की जिसमें जय हो वो पूजा अज़ान हो


उसको सदन में भेजिए हरगिज न आप भी

जिसकी ज़ुबाँ पे देश विरोधी बयान हो


जलसे,जुलुस,दंगे न शाहीन बाग़ हो

कानून की सड़क पे सभी का चालान हो


कुछ मानसिक विक्षिप्त जो सेना को कोसते

बुलडोज़रों की ज़द में अब उनका मकान हो


अब राम को अयोध्या न वनवास दे कभी

सरयू किनारे शंख बजे दीपदान वो

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार


चित्र सभार गूगल

Thursday 28 April 2022

एक गज़ल- उदासी से बचाती है

 

चित्र सभार गूगल

एक गज़ल-

हरे पेड़ों में,उड़ते वक्त ये चिड़िया जो गाती है

सफऱ के दरमियां हमको उदासी से बचाती है


तितलियाँ देखकर ये भूख की चिंता नहीं करते

परों के रंग से कैसे ये बच्चों को लुभाती है


न सरिया,रेत, शीशा और न कोई संगमरमर है

बस अपनी चोंच  के तिनकों से बुलबुल घर बनाती है


वो माझी है मुसाफिर की उँगलियाँ थाम लेता है

किनारे पर उतरने में भी कश्ती डगमगाती है


उसे भी पर्व,रिश्तों का हमेशा मान रखना है

गरीबी गाय के गोबर से अपना घर सजाती है


कई बच्चे हैँ जो मेले में कोई ज़िद नहीं करते

कभी मुज़रिम कभी ये मुफ़लिसी हामिद बनाती है


लड़कपन में कभी माँ की नसीहत कौन सुनता है

वो इक तस्वीर दीवारों पे मुश्किल में रुलाती है


जयकृष्ण राय चित्र

चित्र सभार गूगल


चित्र सभार गूगल

एक गीत -वही बनारस जिसमें रोली -चन्दन टीका है

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत-पहले वाली काशी उसको और मुझे है याद


पहले वाली

काशी मुझको

और उसे है याद ।

अब वह

काशी नहीं

पढ़ रहा हूँ उसका अनुवाद।


बिना कचौड़ी गली

यहाँ का

मौसम फीका है,

वही बनारस

जहाँ घाट पर

चन्दन टीका है,

कोतवाल

भैरव,शिव जी का

दर्शन है अहलाद ।


इसमें कन्नड़ 

गुजराती, 

मलयालम, उड़िया है,

यह संतों 

का तीर्थ-

तीर्थ जादू की पुड़िया है,

वैष्णव

और अघोरी

का माँ गंगा से संवाद ।


नुक्कड़- नुक्कड़

इडली -सांभर

रसगुल्ला,छोला,

नृत्य -गीत

का परीलोक

है बंगाली टोला,

ठुमरी का

आलाप सिखाते

विदुषी को उस्ताद ।


करपात्री -

तैलंग,

विशुद्धानन्द नहीं है आज,

नहीं संत रविदास

न कीनाराम

और कविराज,

घाट -घाट पर

कैसे गूंजे

सुंदर अनहद नाद ।


भाषा बहुत

अनूठी,मौजी

काशी वाली है,

मुंह में

मघई पान दबाए

मीठी गाली है,

का हो गुरू

नमस्ते पहिले

हँसी -ठहाका बाद ।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार



चित्र साभार गूगल



Wednesday 27 April 2022

एक गज़ल-काशी कबीर की

 

स्वामी रामानंदाचार्य जी

हर हर महादेव

इस वर्ष ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होना है इसलिए लगातार सृजन जारी है।आपको कमेंट के लिए परेशान करना मेरा उद्देश्य नहीं है। आप् सभी को कुछ अच्छा लगे तभी टिप्पणी करें।आपका दिन शुभ हो।


तुलसी की,रामानन्द की,काशी कबीर की

चन्दन,तिलक की,भस्म की,मिट्टी अबीर की


संतों के संग गृहस्थ की पूजा औ आरती

राजा के साथ रंक की काशी फ़क़ीर की


इसका महात्म्य वेद में,दर्शन,पुराण में

इसके हवन में गन्ध है खिलते पुंडीर की


शिव के त्रिशूल पर बसी काशी,अजर अमर

रैदास,कीनाराम की गोरख,गंभीर की


राजा विभूति  सिंह की प्रजा बोलती थी जय

अस्सी,गोदौलिया की या फिर लहुरावीर की


शिक्षा की पुण्य भूमि यहीं मालवीय की है

संगीत, नृत्य,पान की,थाली ये खीर की


भैरव का घर है,बुद्ध भी,हनुमान राम के

ख़ुशबू है सारनाथ में बहते समीर की 


संध्या को मंदिरों में नागाड़े भी शंख भी

भूली न आरती कभी गंगा के तीर की 


इसमें प्रसाद,प्रेमचंद,भारतेन्दु हैँ

बिस्मिल्ला खां की शहनाई, ग़ज़लें नज़ीर की

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

काशी नरेश स्वर्गीय विभूति नारायण सिंह


Tuesday 26 April 2022

दो ग़ज़लें -

 

श्रीमद भागवत

ग़ज़लें

एक

हर दरिया का आंसू दिन भर पीता है

खारा जीवन सिर्फ़ समन्दर जीता है


ईश्वर का दर्शन मुश्किल पर सच ये भी

ईश्वर की ही वाणी पावन गीता है


प्यार -मोहब्बत जीवन के संघर्षों की

शरत चन्द्र की सुन्दर कृति परिणीता है


फूल,तितलियाँ,घास,परिंदे गायब हैँ

महानगर का जीवन कितना रीता है


उसकी गर्दन पर नेता की कैंची है

उदघाटन के लिए सुनहरा फीता है

चित्र साभार गूगल


दो


धूप के चश्में से मौसम की कहानी लिखना

कितना मुश्किल है कभी रेत को पानी लिखना


लोकशाही है,न राजा , नहीं दरबार कोई

फिर भी बच्चों की कथाओं में तो रानी लिखना


जब भी तुम आये तो बरसात का मौसम था यहाँ

ये  मई -जून है मेड़ों को न धानी लिखना


इसमें गंगा है,हिमालय है कई मौसम हैँ

शायरों मुल्क की तस्वीर सुहानी लिखना

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Monday 25 April 2022

एक गज़ल-सब तेरी झील सी आँखों को ग़ज़ल कहते हैँ

 

चित्र साभार गूगल


एक गज़ल-

सब तेरी झील सी आँखों को ग़ज़ल कहते हैँ


बर्फ़ जब धूप में पिघले तो सजल कहते हैं

सब तेरी झील सी आँखों को ग़ज़ल कहते हैँ


होंठ भी लाल,गुलाबी हैँ,फ़िरोजी, काही

इनको शायर क्या सभी लोग कंवल कहते हैँ


आज भी दुनिया में कुछ लोग कबीलाई हैँ

ऐसी सूरत को क्या दुनिया में बदल कहते हैँ


इस शहर में भी किताबों के समंदर हैँ कई

जिसमें"आमोद' उसे "राजकमल" कहते हैँ


अब भी चूल्हों की जो उम्मीद है दुनिया भर में

गाँव के लोग उसे अब भी फसल कहते हैँ

जयकृष्ण राय तुषार

श्री आमोद माहेश्वरी


Saturday 23 April 2022

एक ग़ज़ल-मोहब्बत के ख़तों से

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-मोहब्बत के ख़तों से


तमाशा देखिएगा आप भी सरकार अच्छा है

मैं जैसा हूँ, मेरा नाटक,मेरा किरदार अच्छा है


जो दरपन सच दिखाता है मुझे अच्छा नहीं लगता

मेरी तारीफ़ करता जो वही अख़बार अच्छा है


अगर इतनी मुलाक़ातों में तुम कुछ कह नहीं सकते

मोहब्बत के ख़तों से इश्क़ का इज़हार अच्छा है


तुम्हारी राजशाही को अगर सजदा ही करना है

अयोध्या जी में सीताराम का दरबार अच्छा है


यहाँ हर चीज अपनी हैसियत से देखना साहब

यहाँ खुशबू भी बिकती है यहाँ बाज़ार अच्छा है


नदी के इस तरफ़ मलबा,मुसीबत,रेत चमकीली

कभी तुम देखना मौसम नदी के पार अच्छा है


हमारी नींद में हर रोज कुछ सपने बदलते हैं

कभी ये दून, डलहौजी कभी हरिद्वार अच्छा है

शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Tuesday 19 April 2022

एक ग़ज़ल-सत्य का दर्पण दिखाते हैं

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-ये भारत माँ की अन्तिम सांस तक ड्यूटी निभाते हैं


हमारे राम युग को सत्य का दर्पण दिखाते हैं

सियासत छोड़कर चौदह बरस वन में बिताते हैं


तुम्हारे हाथ के पत्थर हमेशा चोट देते हैं

हम पत्थर फेंक कर भी राम जी का पुल बनाते हैं


कोई रावण अहं से खुद को जब ईश्वर समझता है

तभी सोने से निर्मित हम कोई लंका जलाते हैं


वो औरंगजेब था दरबार में धोखा दिया उसने

शिवाजी तब भी गौहरबानो की इज्जत बचाते हैं


अतिथि को देवता केवल सनातन धर्म कहता है

गगन के चाँद से  मामा का हम रिश्ता निभाते हैं


कभी सरहद पे जाकर देखना भारत की सेना को

मिठाई बाँटकर दुश्मन को दीवाली मनाते हैं


वतन की आबरू क्या है शहीदों ने किया साबित

ये भारत माँ की अन्तिम सांस तक ड्यूटी निभाते हैं


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


एक देशगान-हम पत्थर की पूजा करते

 

चित्र साभार गूगल

एक देशगान-हम पत्थर की पूजा करते

हम पत्थर की

पूजा करते

तुम पत्थर बरसाते।

जब हम

ताण्डव करते हैं

तब हिमगिरि भी थर्राते ।


पत्थर से

बजा विश्व में

रामसेतु का डंका,

पत्थर पर

जब अश्रु गिरे तब

जली स्वर्ण की लंका,

पत्थर के

हिमशिखरों पर

हम जनगण मन हैं गाते।


धर्म वही

अच्छा जो औरों

का भी आदर करता,

दीपक से

ईर्ष्या करने पर

रोज पतंगा मरता,

पत्थर पर ही

बैठ तपस्वी

वेद ऋचाएँ गाते।


पत्थर में भी

कला हमारी

एलोरा,एलिफेंटा,

पत्थर के

देवालय में हम

शंख,बजाते घण्टा,

हम जब

क्रोधित हों

उंगली पर गोवर्धन उठ जाते।


पत्थर की

पिंडी में रहतीं

मैहर,वैष्णव माता,

पत्थर से ही

इतिहासों का,

शिलालेख का नाता,

पत्थर से

पत्थर टकराकर

दावानल बन जाते।


पत्थर है

अनमोल बने

जब मूंगा, माणिक,हीरा,

पत्थर की

पूजा करतीं थी

ताज़ बेगम और मीरा,

मंदिर,मस्जिद

गिरिजा

पत्थर से ही नींव बनाते।

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Sunday 17 April 2022

एक लोकभाषा कविता-खेतवा में गाँव कै परानं

 

चित्र साभार गूगल

लोकभाषा कविता

खेतवा में गाँव कै परान मोरे भइया


करा गाँव और खेत कै

बखान मोरे भइया

खेतवा में गाँव कै

परान मोरे भइया ।


मानसून कै जुआ

खेत औ किसानी

नदिया के पेटवा मा

अँजुरी भर पानी

दुनो ही फसीलिया में

ढोर से तबाही

झगड़ा पड़ोसियन से

कोर्ट में गवाही

मलकिन कै बिछिया

हेरान मोरे भइया ।


बढ़ल बा आबादी

घरे-घरे बँटवारा

लहुरा क आँगन

बड़े भाय कै ओसारा

दतुअन कै बात कहाँ

नीम भी कटाइल

नई पीढ़ी गाँव छोड़

शहर में पराइल

याद आवै जांत्ता कै

पिसान मोरे भइया ।


दुअरा न हाथी,घोड़ा

नाहीं बैल,गाय बा

जहाँ देखा बम-गोली

रोज ठांय-ठांय बा

बंसवट,करील नहीं

तीतर ना महोखा

गोबरी दालान में न

मड़ई झरोखा

खरहा, सियार न

मचान मोरे भइया ।


रजवाहा गाद भइल

दिखै नहीं मछली

सावन भयल सूना

नाहीं झूला ,नहीं कजली

हीरा बुल्लू ,रामदेव क

बिरहा करताल कहाँ

फागुन में भी रंग नहीं

चैता, चौपाल कहाँ

हुक्का नहीं भाँग

नहीं पान मोरे भइया।


आपस में  परेम नहीं

मेल-जोल गायब

केहू बा कलेक्टर बाबू

 केहू बा विधायक

ना कउनो नौटंकी,कुश्ती

नहीं रामलीला

कूकर कै सिटी बजै

गुम भयल पतीला

बूढ़वन क घटल

बहुत मान मोरे भइया।


बबुरे कै पेड़ नहीं

नहीं बा खतोना

पत्तल कै ठाट गयल

बन्द भयल दोना

मंडप कै रीति विदा

होटले में शादी

कोहबर कै गीत

कहाँ गावैं अब दादी

पियरी क भइल अब

उठान मोरे भइया।


फोन लिखै, फोन सुनै

चिट्ठी, चौपाती

बाबा के घरोहिया मा

दिया नहीं बाती

ननद के चिकोटी

नाहीं काटै भौजाई

चौका-चूल्हा अउर 

खाना परसै अब दाई

सुखवन ना,कोठिला

में धान मोरे भइया ।


रोजी-रोटी नाहीं कउनो

नाहीं घर मे योद्धा

कैसे जइहैं बाबू

माई काशी अ अयोध्या

काकी के हौ मोतियाबिंद

कक्का के मलेरिया

सातौ दिन अन्हरिया हौ

ना कब्बो अंजोरिया

पढ़ा तानी मुंशी कै

गोदान मोरे भइया ।


नाही अब सरंगी लेइके

जोगी बाबा गावैं

दुलहिन क डोलिया

कहार न उठावें

नाहीं कत्तों धोबिया क

नाच न कहरवा

महुआ क लपसी नाहीं

आम कै अचरवा

जागा देखा सोने कै

विहान मोरे भइया।


ना केहू भगतसिंह

हउवै ना झाँसी कै रानी

भारत माँ के घर घर

रहलै पहिले  बलिदानी

नर्मदा,कावेरी,सरयू

गंगा के बचावा

देसवा कै भार सबै

मिली के उठावा

देशवा क माटी ई

महान मोरे भइया ।


जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


सभी चित्र साभार गूगल

एक गीत-सँवरा-सँवरा सा मौसम हो

 

चित्र साभार गूगल



मौसम का गीत-सँवरा-सँवरा सा मौसम हो


सँवरा-सँवरा

सा मौसम हो

नदियों की कल-कल हो।

सुमुखि पुजारिन

के हाथों में

अक्षत, गंगा जल हो ।


जेठ और वैशाख

फूल के

माथ पसीना छूटे,

कालिदास का

विरही बादल

बारिश बनकर टूटे,

नए-नए

जोड़े की मन्नत

मन में विंध्याचल हो।


यादों की

पुरवाई महकी

अलबम खोल रहे,

कच्चे आमों की

डाली पर

तोते बोल रहे,

मीनाक्षी

आँखों में

दरपन लगा रहे काजल।


गोधूली में

गायों के संग

गूंजे गीत चनैनी,

बचपन की

यादों में खोए

दादा मलते खैनी,

सोच रहे हैं

बंजर,टीला

कैसे समतल हो ।

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Saturday 16 April 2022

एक ग़ज़ल-उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री जी को समर्पित

 

उत्तर प्रदेश के सम्मानीय मुख्यमंत्री जी को समर्पित एक ग़ज़ल

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-

हरेक रावण की लंका में अब बुल्डोजर चलाता हूँ

कभी मैं शंख,घंटा और कभी डमरू बजाता हूँ

सनातन धर्म का रक्षक हूँ मठ,मन्दिर सजाता हूँ


मनोहर स्फटिक पर अब सिया संग राम बैठे हैं

मैं सरयू के किनारे अब विजयदशमी मनाता हूँ


कोई राक्षस न अब सीताहरण की बात सोचेगा

हरेक रावण की लंका में अब बुल्डोजर चलाता हूँ


हमारे वेद,गीता,ऋषि युगों से राष्ट्र गौरव हैं

सुशासन से मैं अपने राष्ट्र का गौरव बचाता हूँ


ये काशी कालभैरव,शिव के संग गंगा की थाती है

मैं मोदी की नई काशी को अपना सिर झुकाता हूँ


न वैभव की मुझे लिप्सा गुरू गोरख की महिमा है

मैं अनहद नाद की महिमा से भी परिचित कराता हूँ


मेरे शासन में बकरी,बाघ तट पर साथ रहते हैं

जो नरभक्षी है उनका घर जहन्नुम में बनाता हूँ

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Friday 15 April 2022

एक ग़ज़ल-रेत का दरिया हूँ

 

सुर्खाब

एक ग़ज़ल-रेत का दरिया हूँ


कोई कश्ती नहीं,पानी नहीं ,गिर्दाब नहीं

रेत का दरिया हूँ मुझमें कोई सैलाब नहीं


जिसमें पानी था उसी झील पे बरसात हुई

नींद में भी अब हरेपन का कोई ख्वाब नहीं


छत पे आ जाओ तो कुछ बात की खुशबू महके

आसमानों में कोई बोलता महताब नहीं


ये भी सहारा है यहाँ नागफ़नी के जंगल

फूल,फल,पेड़,तितलियाँ नहीं सुर्खाब नहीं


आज के दौर के बच्चे नहीं मिलते हँसकर

मिल भी जाएं तो सलीके से वो आदाब नहीं


जब  भी नाराज़ हुआ लहरों पे कंकड़ फेंका

अब मेरे गाँव में पुरखों का वो तालाब नहीं


किसको फुरसत है किसी पेड़ के नीचे बैठे

अब इशारों में कोई मिलने को बेताब नहीं

चित्र साभार गूगल



जयकृष्ण राय तुषार

Sunday 10 April 2022

एक गीतिका-रामनवमी पर

 

प्रभु श्रीराम और माता सीता

रामनवमी भगवान श्रीराम का अवतरण दिवस है।आप सभी को बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।


अष्टकमलों से सुवासित आज सरयू धाम

मोक्ष का इस सृष्टि में है मन्त्र केवल राम


वेद भी करते रहे जिसका सदा गुणगान

सत्य,शाश्वत, और सनातन रूप वह अभिराम


राम विनयी और विजयी ,रहे अपराजेय

मन्थराओं का सियासत में नहीं अब काम


सगुण, निर्गुण,भक्तवत्सल,शब्द,अक्षर,राम

शिव उपासक,शत्रुनाशक,सिया के सुखधाम

जयकृष्ण राय तुषार

कमल पुष्प


Saturday 9 April 2022

एक ग़ज़ल-मौसम में भी

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल-

झुलसाती हुई ग्रीष्म है,बरसात कहाँ है

मौसम में भी मौसम की तरह बात कहाँ है


इक जंग छिड़ी और वो रुकती भी नहीं है

दुनिया को बचाने की करामात कहाँ है


फिर वक़्त कटोरे में ज़हर घोल रहा है

सच बोलने वाला मगर सुकरात कहाँ है


कुछ फूल लिए हाथों में ये कौन मुख़ातिब

उलझा हूँ कभी मेरी मुलाकात कहाँ है


अब कैसे मोहब्बत के कोई गीत लिखेगा

अब चाँद-चोकोरों से सजी रात कहाँ है

जयकृष्ण राय तुषार




Wednesday 6 April 2022

एक ग़ज़ल राष्ट्र को समर्पित

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल राष्ट्र को समर्पित


तिलक चन्दन का,मिट्टी यज्ञ की ,गंगा का पानी है

ये भारत भूमि ईश्वर की लिखी मौलिक कहानी है


यहीं गीता,यहीं सीता,ये धरती सप्तऋषियों की

ये घाटी ब्रह्मकमलों की यहीं शिव की भवानी है


इसे आतंक से अब तोड़ने का ख़्वाब मत देखो

यहाँ योगी का शासन है गुरु गोरख की बानी है


मुकुट भारत का नवरत्नों का यह फीका नहीं होगा

ये चिड़िया स्वर्ण की असली,नहीं सोने का पानी है


हिफ़ाज़त में हमारे मुल्क की एक शाह बैठा है

हमारी सैन्य ताकत से सुरक्षित राजधानी है


यहाँ काशी,अयोध्या,द्वारिका,कामाख्या भी है

यहाँ की सभ्यता और संस्कृति सदियों पुरानी है


ये भारत माँ भरत,लव कुश,भगत,एकलव्य की जननी

यहाँ पारिजात भी खिलता है ,इसमें  रात रानी है

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...