Thursday 21 December 2017

नववर्ष -दो गीत



चित्र -गूगल से साभार 


दो गीत -नववर्ष 
नववर्ष की मंगलमय शुभकामनाओं सहित 

नये साल तुम 
आना अपना 
रंग -रूप ले प्यारा |
संगम में 
आये गोमुख से 
निर्मल जल की धारा |

मौसम 
मन को जीते 
बोले मृदु संतों की बानी ,
बच्चों के 
सपनों में आये 
फिर परियों की रानी ,
मन्दिर -मस्जिद 
चर्च -पगोडा 
गले मिले गुरुद्वारा |

हल्दी गांठ 
कलाई में हो 
बासंती दिन लौटे ,
मृगनयनी 
आँखों के सहचर 
बनें नये कजरौटे ,
फूलों के संग 
आंख मिचोली 
में दिन बीते सारा |

लोकरंग में 
मन रंग जाये 
उत्सव धूम मचाये ,
चैती ,सोहर 
फगुआ -विरहा 
भोर साँझ संग गाये ,
ढोल -मंजीरा 
सारंगी का 
साथी हो बंजारा |

दो 
बड़ों को 
प्रणाम कहे 
छोटों को प्यार मिले |
नये साल 
आना तो 
सबको उपहार मिले |

रिश्तों को 
धार मिले 
कहकहे दालान को ,
गहगहे 
गुलाब मिलें 
मुरझाते लॉन को ,
बच्चों को 
परीकथा 
तितली ,इतवार मिले |



चित्र -गूगल से साभार 

Wednesday 26 July 2017

एक गीत -है वंदेमातरम् गीत मेरा

चित्र -गूगल से साभार 



एक गीत -है वन्देमातरम गीत मेरा 

यह दुनिया का स्वर्ग 
इसे हम भारत माता कहते हैं |
इसके पुत्र करोड़ों आपस में 
मिलजुल कर रहते हैं | |

हम सबकी इज्जत करते हैं 
हम सबको गले लगाते हैं ,
हम मानवता के रक्षक हैं 
हम गीत शांति के गाते हैं .
जो हमको आँख दिखाते हैं 
वो खण्डहरों सा ढहते हैं |

है वंदेमातरम् गीत मेरा 
जन गण मन मेरा गान रहे ,
इस मातृभूमि के कण -कण का 
दुनिया भर में सम्मान रहे ,
जिसके सिर छत्र हिमालय है 
चरणों में सागर बहते  हैं |

यह मिटटी कितनी प्यारी है 
अनगिन  रंगों के फूल यहाँ ,
बहुभाषा,संस्कृति बोली का 
ऐसा कोई स्कूल कहाँ ,
एकलव्य यहाँ बन जाते हैं 
जो झोपड़ियों में रहते हैं |
चित्र -गूगल से साभार 

Saturday 24 June 2017

गंगा की वेदना -एक गीत -जन -जन का पाप हरे स्वयं बुरे हाल में



चित्र -गूगल से साभार 



गंगा की वेदना -एक गीत 

गंगा से प्रेम महज 
पूजा की थाल में |
शहरों में पांव फंसे 
गाद भरे जाल में |

आंख डबडबायी है 
धार धार रोती है ,
नींद में कराह रही 
मैया कब सोती है ,
जाने कब सीता सी 
गुम हो पाताल में |

शंकर के माथे से 
धवल धार आयी थी ,
फूलों की खुशबू से 
सृष्टि महमहायी थी ,
देखता भागीरथ चुप 
माँ को इस हाल में |

वसन हुए मैले सब 
चेहरे पर तेज नहीं ,
काँटों से राह भरी 
फूलों की सेज नहीं ,
एक महासागर थी 
समा गयी ताल में |

शक्तिहीन धारा में 
पर्व हम मनाते हैं ,
टूटते कगारों पर 
स्वस्ति -मन्त्र गाते हैं ,
जन -जन का पाप हरे 
स्वयं बुरे हाल में |
चित्र -गूगल से साभार 

Thursday 9 March 2017

एक गीत -होली -आम कुतरते हुए सुए से



चित्र -गूगल से साभार 

आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ 
एक गीत -होली 

आम कुतरते हुए सूए से 
मैना कहे मुंडेर की |
अबकी होली में ले आना 
भुजिया बीकानेर की |

गोकुल ,वृन्दावन की हो 
या होली हो बरसाने की ,
परदेसी की वही पुरानी
आदत  है तरसाने की ,
उसकी आँखों को भाती है 
कठपुतली आमेर की |

इस होली में हरे पेड़ की 
शाख न कोई टूटे ,
मिलें गले से गले 
पकड़कर हाथ न कोई छूटे ,
हर घर -आंगन महके खुशबू 
गुड़हल और कनेर की |

चौपालों पर ढोल मजीरे 
सुर गूंजे करताल के ,
रुमालों से छूट न पायें 
रंग गुलाबी गाल के ,
फगुआ गाएं या फिर 
बांचेंगे कविता शमशेर की |

कवि जयकृष्ण राय तुषार
[मेरे इस गीत को आदरणीय अरुण आदित्य द्वारा अमर उजाला में प्रकाशित किया गया था मेरे संग्रह में भी है |व्यस्ततावश नया लिखना नहीं हो पा रहा है |

चित्र -गूगल से साभार 

एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता

चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -इसी से चाँद मुक़म्मल नज़र नहीं आता सफ़र में धुंध सा बादल, कभी शजर आता इसी से चाँद मुक़म्मल नहीं नज़र आता बताता हाल मैं ...