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कवि /आलोचक प्रो० राजेन्द्र कुमार सम्पर्क -0532-2466529 |
आधुनिक हिंदी आलोचना में प्रो० राजेन्द्र कुमार का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है | आलोचक होने के साथ -साथ राजेन्द्र कुमार जी बहुत ही अच्छे कवि हैं |हिंदी की कई साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन कर चुके राजेन्द्र कुमार जी की कविताएँ देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में समय -समय पर प्रकाशित होती रही हैं |प्रोफेसर राजेन्द्र कुमार का जन्म 24 जुलाई 1943 को कानपुर में नया चौक परेड में हुआ था | राजेन्द्र कुमार की उच्च शिक्षा M.Sc.रसायन विज्ञान डी० ए० वी० कालेज कानपुर से सम्पन्न हुई | तब यह कालेज आगरा विश्व विद्यालय से सम्बद्ध था | वहीँ पर जी० एन० के० कालेज में कुछ दिनों तक अध्यापन भी किया | प्रो० राजेन्द्र कुमार मजदूर आंदोलनों में हिस्सा लेते थे जिससे पुलिस परेशान भी करती थी ,इस कारण इन्हें कानपुर छोडकर इलाहाबाद आना पड़ा |इलाहाबाद में उन दिनों श्रीपत राय कहानी और अमृत राय [दोनों मुंशी प्रेमचन्द के बेटे ] नई कहानी पत्रिकाएँ निकालते थे | यह समय 1968 का था ,प्रो० राजेन्द कुमार भी इन्ही पत्रिकाओं से जुड़ गए |बाद में इलाहाबाद विश्व विद्यालय से एम० ए० हिंदी और यहीं से डी० फ़िल० करने के बाद यहीं हिंदी विभाग में अध्यापन करने लगे | बाद में इसी विश्व विद्यालय [इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ] में प्रो० राजेन्द्र कुमार हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से सन 2005 में सेवानिवृत्त हो गए | राजेन्द्र कुमार कई महत्वपूर्ण पत्रिकाओं के सम्पादन से भी जुड़े रहे |सन 1981 से 2003 तक अभिप्राय का सम्पादन ,लगभग दो वर्षों तक हिंदी विश्व विद्यालय वर्धा की पत्रिका बहुबचन का सम्पादन ,रचना उत्सव का अतिथि सम्पादन प्रो० राजेन्द्र कुमार ने किया | प्रो० राजेन्द्र कुमार जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश के अध्यक्ष रह चुके हैं |इस समय जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष हैं |सम्पादित कृतियाँ -साही के बहाने ,स्वाधीनता के बहाने और निराला | आलोचनात्मक पुस्तकें -प्रतिबद्धतता के बावजूद ,शब्द घड़ी में समय ,अनन्तर तथा अन्य कहानियां कथा संग्रह | काव्य कृतियाँ -ऋण गुण ऋण जो उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से पुरष्कृत भी हुआ था | आईना द्रोह लम्बी कविता पुस्तिका ,एक कविता संग्रह हर कोशिश है एक बगावत अंतिका प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशनाधीन है ,जो अतिशीघ्र हमारे बीच में होगी |सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी प्रो० राजेन्द्र कुमार की कुछ कवितायेँ हम आप तक पहुंचा रहे हैं |
प्रोफेसर राजेन्द्र कुमार की कविताएँ
वो देखो
इस पेड़ की डालियों पर बैठे पंछी
अपनी -अपनी बोलियों में
कैसी आज़ादी से चहचहा रहे हैं
मगर यह पेड़
कैसे भूल जाए
कि उसकी इन्हीं डालों पर
बरसों पहले
रस्सी के फंदे डाले गये थे
और उनसे फांसी दे दी गई थी
आज़ादी के कितने ही दीवानों को
पेड़ झूठ नहीं बोलता
पेड़ आगे भी झूठ नहीं बोलेगा
उसकी हर पत्ती एक आँख होती है
और हज़ार -हज़ार आँखों से जो देखा जाए
उससे मुकरा नहीं जा सकता
आज़ादी और गुलामी के बीच छिड़ी जंग
और बर्बरता के खात्मे का दावा करने वाली दंभी
सभ्यताओं का
इन पेड़ों से बेहतर गवाह
दूसरा कौन हो सकता है
[यह इलाहाबाद के चौक में स्थित नीम का वह पेड़ जिस पर क्रांतिकारियों को फांसी दे दी जाती थी ]
दो -
अमरकांत ,गर तुम क्रिकेटर होते
अमरकांत गर तुम क्रिकेटर होते
तुम्हारी कलम में कहानियां धड़कती रहीं
विचार को उकसाने वाली
मगर सट्टा तो बल्ले पर ही लगाया जा सकता है
कलम पर नहीं
और विचार को उकसाना
वैसे ही कहाँ मुफीद है
पैसा लगाने वालों को ?
विचार तो बहुत हल्की चीज़ है
और हलकी चीज़ पर
ही पैसा लगाना हो अगर
तो चप्पलें आ गयीं हैं बाज़ार में
विचार से भी हल्की
अमरकांत ,
हाथ तुम्हारे बल्ला होता
कलम की जगह
तो होते दुनिया में तुम ख्यात ,
जीतते तो भी चर्चा में होते
हारते तो भी
करोड़ों के वारे -न्यारे होते
कितनी ही कम्पनियों के तुम प्यारे होते
नत्थी होती तुम्हारी मुस्कान
कैसी -कैसी चीजों के साथ
तस्वीरें इतनी छप चुकीं होतीं तुम्हारी
कि जहाँ तुम होते
पहचान लिए जाते
तुम्हें कहीं भी अपना परिचय
खुद न देना होता
दावा होता
अपने देश की धरती का होने का
और विज्ञापन के आकाश के तुम
सितारे होते
अमरकांत ,गर तुम क्रिकेटर होते |
तीन -
भगत सिंह :सौ बरस के बूढ़े के रूप में
याद किये जाने के विरुद्ध
भगत सिंह ;सौ बरस के बूढ़े के रूप में याद किये जाने के विरुद्ध
मैं फिर कहता हूँ
फांसी के तख्ते पर चढ़ाये जाने के पचहत्तर बरस बाद भी
'क्रांति की तलवार की धार विचारों की शान तेज होती है !
वह बम
जो मैंने असेंबली में फेंका था
उसका धमाका सुनने वालों में तो अब शायद ही कोई बचा हो
लेकिन वह सिर्फ बम नहीं ,एक विचार था
और विचार सिर्फ सुने जाने के लिए नहीं होते
माना कि यह मेरे
जनम का सौवां बरस है
लेकिन मेरे प्यारों ,
मुझे सिर्फ सौ बरस के बूढों में मत ढूँढो
वे तेइस बरस कुछ महीने
आज भी मिल जाएँ कहीं ,किसी हालत में
किन्ही नौजवानों में
तो उन्हें
मेरा सलाम कहना
और उनका साथ देना .....
और अपनी उम्र पर गर्व करने वाले बूढों से कहना
अपने बुढ़ापे का गौरव उन पर न्योव्छावर कर दें |