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| चित्र साभार गूगल | 
ये मत पूछो किधर से देखते हैं
तुम्हें मन की नज़र से देखते हैं 
ये मौसम देखकर खुश हैं परिंदे 
फले फूले शज़र से देखते हैं 
सुने हैं चाँद धुंधला हो गया है 
सभी उसको शहर से देखते हैं 
कुशल तैराक बनने का हुनर है 
चलो कश्ती भंवर से देखते हैं 
किताबों में सही  मंज़र नहीं है
चलो दुनिया सफ़र से देखते हैं 
टिकट लगने लगा है पार्को में 
चलो सूरज को घर से देखते हैं 
हमारे दौर की गज़लें नई हैं 
वो ग़ालिब की बहर से देखते हैं 


किताबों में सही मंज़र नहीं है, चलो दुनिया सफ़र से देखते हैं। बहुत ख़ूब तुषार जी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई साहब. सादर प्रणाम
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