Sunday, 10 November 2024

एक ग़ज़ल -फूलों की वादियाँ

 

चित्र साभार गूगल 

एक ग़ज़ल -फूलों की वादियाँ 


पर्वत, पठार, खेत, ये बादल, ये बिजलियाँ

चिड़ियों के साथ गातीं थीं फूलों की वादियाँ 


धानी, हरी ये भूमि थी मौसम भी खुशनुमा 

मुट्ठी में बंद कर हम उड़ाते थे तितलियाँ 


किस्से तमाम घर की अंगीठी के पास थे 

स्वेटर, सलाई, ऊन के जिम्मे थी सर्दियाँ 


बहती नदी में रेत के टीले नहीं थे तब 

दरिया के साफ़ पानी में तिरती थीं मछलियाँ 


कोहबर के साथ हल्दी के छापों की याद है 

मंडप बिना ही शहरों में होती हैं शादियाँ 


मौसम का लोकरंग से रिश्ता था हर समय 

झूलों के साथ गुम हुईं सावन में कजलियाँ 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द मंगलवार 12 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम

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  2. बदलते हुए हालातों का सही बयान करती सुंदर ग़ज़ल

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  3. चंद पंक्तियों में कितना कुछ बयां करती सुंदर रचना।
    बदलते मौसम की तरह बहुत कुछ बदल गया। पर मौसम तो कुछ महीनों में फिर से आ जाता, समाज के ये बदलाव शायद कभी नहीं लौट के आने वाले।

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

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