Wednesday, 6 November 2024

ग़ज़ल -हिरन की प्यास

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल -हिरन की प्यास 

सुनहरे जाल फैलाकर ये दुनिया प्यार देती है 
हिरन की प्यास ही अक्सर हिरन को मार देती है 

नदी के तट शिकारी भी, अघोरी भी, परिंदे भी 
ये अपने छल को कितने रंग और आकार देती है 

किताबें संत भी गढ़ती हैं, नक्सल भी बनाती हैं 
मगर गीता हमारी सोच को विस्तार देती है 

नदी, पर्वत, चहकते वन, कहीं फूलों की घाटी है 
प्रकृति धरती को कितने रंग का श्रृंगार देती है 

लुभाते थे कभी बच्चों को तितली, फूल खेतों में 
नए कान्वेंट की कल्चर अब बचपन मार देती है 

मोहब्बत के ख़तों में भी कभी दर्शन था जीवन का 
मोहब्बत आजकल बस ज़िस्म को बाज़ार देती है 

ये किस्मत कब किसे क्या दे उसे मालूम है केवल 
कभी आँसू के गुलदस्ते कभी उपहार देती है 

कवि /शायर 
जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 7 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -नया साल

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल -आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  मौसम की कहानी नई उनवान नया हो  आगाज़ नए साल का भगवान नया हो  फूलों पे तितलियाँ हों ब...