चित्र -गूगल से साभार |
नये साल की उफ़ !
उफ! कितनी
तस्वीर घिनौनी है।
फिर
अफवाहों से ही
अपनी आंख मिचौनी है।
वही सभी
शतरंज खिलाड़ी
वही पियादे हैं,
यहां हलफनामों में भी
सब झूठे वादे हैं,
अपनी मूरत से
मुखिया की
मूरत बौनी है।
आंगन में
बंटकर तुलसी का
बिरवा मुरझाया,
मझली भाभी का
दरपन सा
चेहरा धुंधलाया,
मछली सी
आंखों में
टूटी एक बरौनी है।
गेहूं की
बाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएं हैं
दिन सौतेला है,
दिन भर बजती
दरवाजे की
सांकल मौनी है।
चित्र से गुगल सर्च से साभार
कविता तो बहुत ही अच्छी लगी पर ऊपर की तस्वीर से तालमेल समझ में नहीं आया.
ReplyDeleteइतनी मार्मिक सी कविता और इतनी मासूम तस्वीर.. .
बढ़िया शब्दों और भावनाओं का तालमेल.
ReplyDeleteनया साल आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आये.
मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
एक खूबसूरत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteअनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
aadarniya shikha ji aapki bat sahi hai lekin mera blog koi aur type karta hai other state se kabhi kabhi talmel me dikkat ho jati hai chitr kavita ke anuroop bilkul nahin hai
ReplyDeleteयथार्थ की बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको भी नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें..देर से पहुँचने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ
ReplyDeleteआशा है यह नव वर्ष आपके जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लेकर आएगा ..शुक्रिया ..मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
आपकी कविता के प्रत्येक शब्द में गहरा अर्थ छुपा है ,इस अर्थपूर्ण कविता के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग अनकवी पर आने का वक्त निकाल पाएंगे तो खुशी होगी.
ReplyDeleteबहुत खूब .. भावनाओं को शब्दों में पिरो दिया है आपने ... लाजवाब ....
ReplyDeleteआपको और आपके पूरे परिवार को नव वश मंगलमय हो ...
गेहूं की
ReplyDeleteबाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएं हैं
दिन सौतेला है,
दिन भर बजती
दरवाजे की
सांकल मौनी है।
वाह, तुषार जी, बहुत ही सुंदर नवगीत का सृजन किया है आपने...
गीत में आपकी काव्य प्रतिभा झलक रही है।
गेहूं की
ReplyDeleteबाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएं हैं
दिन सौतेला है,
दिन भर बजती
दरवाजे की
सांकल मौनी है।
_____________
अच्छा नवगीत है...
आंगन में
ReplyDeleteबंटकर तुलसी का
बिरवा मुरझाया,
मझली भाभी का
दरपन सा
चेहरा धुंधलाया,
मछली सी
आंखों में
टूटी एक बरौनी है...
अद्भुत शब्द संयोजन .....
गेहूं की
बाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
सुग्गे को गेहूं की बाली पर तो बैठाते .....
तुषार जी ,
ReplyDeleteबीते वर्ष के बदन पर चिपके दर्पण के टुकड़ों में सुबकती खंड खंड हुई संवेदना की जो तस्वीर आपने पेश की है उसका जवाब नहीं !
और आपके लिखने का अंदाज तो मन को छू लेता है !
"आंगन में
बंटकर तुलसी का
बिरवा मुरझाया,
मझली भाभी का
दरपन सा
चेहरा धुंधलाया,
मछली सी
आंखों में
टूटी एक बरौनी है।"
सुन्दर रचना के लिए बहुत आभार !
नव वर्ष की हार्दिक बधाई !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत खूब तुषार जी, वर्णन दुखों का है लेकिन अपनी मार्मिकता, संवेदनशीलता और आकर्षक अभिव्यक्ति से मन आनंदित करता है। बहुत बधाई !
ReplyDeleteगेहूं की
ReplyDeleteबाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएं हैं
दिन सौतेला है,
Wah Wah kya bat hai Tushar Ji
अच्छी लगी यह रचना.
ReplyDeleteनव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें.
बहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteपरन्तु क्यूं न खुद को इतना हंसाया जाए कि
गम भी कह दे... "तुझे रुलाने के लिए अभी मेरी औकात बौनी है"
poojaji thaks.main khud aashavadi kavi hoonleki yah bhi hum sab ka dayitva hai ki hum vyvastha per samaj per comments karen.kavitaon me vaividhya bhi hon chahiye.lekin is tarah ke bebak comments blog me aane chahiya ise se blogging ka bhala hoga.anytha blog chaplosika adda ban jayenge.sabhi mitron ko navvars ki shubhkamnayen.
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द सामर्थ्य ...
ReplyDeleteशुभकामनायें
bahut hi prabhawi rachna
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!!
ReplyDeleteजितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
ReplyDeleteसिलसिला जारी रखें ।
आपको पुनः बधाई ।
satguru-satykikhoj.blogspot.com
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ReplyDeleteतुषार जी , बहुत ही गहरे एहसास है इन बिम्बों के पीछे ... सच बहुत ही मार्मिक चित्र आपने उकेरा है. सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDelete.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
अपने भाव बहुत ख़ूबसूरती से पिरोये हैं आपने रचना में ... धन्यवाद हम तक ये रचना पहुँचाने के लिए ...
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ...
इतनी भी क्या बेरूखी. सुबह रोज़ होती है..इंतज़ार करना चाहिये.
ReplyDeleteभावना प्रधान छंदमुक्त सुन्दर कविता.
ReplyDeleteआभार .