कुछ सामयिक दोहे
चित्र साभार गूगल |
मौसम के बदलाव का कुहरा है सन्देश
सूरज भी जाने लगा जाड़े में परदेश
हिरनी आँखों में रहें रोज सुनहरे ख़्वाब
सबके मन उपवन रहें खुशबू और गुलाब
कोई भी अपना नहीं दुनिया माया जाल
ख़्वाब कमल के देखता दिनभर सूखा ताल
जिससे मन की बात हो वह ही सबसे दूर
आओ मन फिर से पढ़ें तुलसी, मीरा, सूर
कुछ क्षण ही आकाश में चाँद, चाँदनी, नूर
सुख के दिन उड़ते रहे जैसे खुले कपूर
फिर से जगमग हो गए गंगा -यमुना तीर
घाटों पर जलते दिए खुशबू लिए समीर
महिमा गाते कुम्भ की सारे वेद -पुरान
तीर्थराज में कीजिए दान और स्नान
राम मिलेंगे आपको बनिए खुद हनुमान
भक्तों के आधीन हैं देव और भगवान
सबसे हाथ मिलाइये सबसे करिए प्यार
बुलडोज़र से टूटता नफ़रत का बाजार
कुहरे से डरिये नहीं इसके बाद वसंत
मिलते हैं मधुमास में सुंदर फूल अनंत
इस चिड़िया को याद है हर मौसम का गीत
अधरों में जैसे छुपा वंशी का संगीत
चित्र साभार गूगल |
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