Wednesday, 18 December 2024

कुछ सामयिक दोहे


कुछ सामयिक दोहे 

चित्र साभार गूगल 



मौसम के बदलाव का कुहरा है सन्देश 

सूरज भी जाने लगा जाड़े में परदेश 


हिरनी आँखों में रहें रोज सुनहरे ख़्वाब 

सबके मन उपवन रहें खुशबू और गुलाब 


कोई भी अपना नहीं दुनिया माया जाल 

ख़्वाब कमल के देखता दिनभर सूखा ताल 


जिससे मन की बात हो वह ही सबसे दूर 

आओ मन फिर से पढ़ें तुलसी, मीरा, सूर 


कुछ क्षण ही आकाश में चाँद, चाँदनी, नूर 

सुख के दिन उड़ते रहे जैसे खुले कपूर 


फिर से जगमग हो गए गंगा -यमुना तीर 

घाटों पर जलते दिए खुशबू लिए समीर 


महिमा गाते कुम्भ की सारे वेद -पुरान 

तीर्थराज में कीजिए दान और स्नान 


राम मिलेंगे आपको बनिए खुद हनुमान 

भक्तों के आधीन हैं देव और भगवान 


सबसे हाथ मिलाइये सबसे करिए प्यार 

बुलडोज़र से टूटता नफ़रत का बाजार 


कुहरे से डरिये नहीं इसके बाद वसंत 

मिलते हैं मधुमास में सुंदर फूल अनंत


इस चिड़िया को याद है हर मौसम का गीत 

अधरों में जैसे छुपा वंशी का संगीत


चित्र साभार गूगल 
कवि जयकृष्ण राय तुषार 


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