चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा ग़ज़ल -हिंदी ग़ज़ल में है
उर्दू ग़ज़ल है इश्क, मोहब्बत महल में है
जीवन का लोक रंग तो हिंदी ग़ज़ल में है
नदियों के साथ झील भी, दरिया भी,कूप भी
लेकिन कहाँ वो पुण्य जो गंगा के जल में है
मेरी ग़ज़ल तमाम रिसालों में छप गयी
अनजान है इक दोस्त जो घर के बगल में है
दरिया में चाँद देखके सब लोग थे मगन
आँखों को सच पता था ये छाया असल में है
धरती को फोड़ करके निकलते हैं सारे रंग
सरसों का पीला रंग भी धानी फसल में है
खुशबू के साथ सैकड़ों रंगों के फूल हैं
रिश्ता गज़ब का दोस्तों कीचड़ कमल में है
वैसे शपथ लिए थे सभी संविधान की
लेकिन कहाँ ईमान का जज़्बा अमल में है
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शनिवार 09 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार भाई
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteजीवन का लोक रंग तो हिंदी ग़ज़ल में है
ReplyDeleteरिश्ता ग़ज़ब दोस्तों कीचड़ में कमल है
...बहुत खूब,,,,
हार्दिक आभार आपका
Deleteनदियों के साथ झील भी, दरिया भी,कूप भी
ReplyDeleteलेकिन कहाँ वो पुण्य जो गंगा के जल में है
बहुत सुंदर बात!! हर अश्यार उम्दा है
हार्दिक आभार आपका
Deleteदरिया में चाँद देखके सब लोग थे मगन
ReplyDeleteआँखों को सच पता था ये छाया असल में है - behad sundar!
आपका हृदय से आभार
Deleteमेरी ग़ज़ल तमाम रिसालों में छप गयी, अनजान है इक दोस्त जो घर के बगल में है। क्या कहने हैं आपके अशआर के तुषार जी।
ReplyDeleteभाई साहब को हृदय से प्रणाम. हार्दिक आभार
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