Thursday 28 April 2022

एक गज़ल- उदासी से बचाती है

 

चित्र सभार गूगल

एक गज़ल-

हरे पेड़ों में,उड़ते वक्त ये चिड़िया जो गाती है

सफऱ के दरमियां हमको उदासी से बचाती है


तितलियाँ देखकर ये भूख की चिंता नहीं करते

परों के रंग से कैसे ये बच्चों को लुभाती है


न सरिया,रेत, शीशा और न कोई संगमरमर है

बस अपनी चोंच  के तिनकों से बुलबुल घर बनाती है


वो माझी है मुसाफिर की उँगलियाँ थाम लेता है

किनारे पर उतरने में भी कश्ती डगमगाती है


उसे भी पर्व,रिश्तों का हमेशा मान रखना है

गरीबी गाय के गोबर से अपना घर सजाती है


कई बच्चे हैँ जो मेले में कोई ज़िद नहीं करते

कभी मुज़रिम कभी ये मुफ़लिसी हामिद बनाती है


लड़कपन में कभी माँ की नसीहत कौन सुनता है

वो इक तस्वीर दीवारों पे मुश्किल में रुलाती है


जयकृष्ण राय चित्र

चित्र सभार गूगल


चित्र सभार गूगल

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