चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-ये भारत माँ की अन्तिम सांस तक ड्यूटी निभाते हैं
हमारे राम युग को सत्य का दर्पण दिखाते हैं
सियासत छोड़कर चौदह बरस वन में बिताते हैं
तुम्हारे हाथ के पत्थर हमेशा चोट देते हैं
हम पत्थर फेंक कर भी राम जी का पुल बनाते हैं
कोई रावण अहं से खुद को जब ईश्वर समझता है
तभी सोने से निर्मित हम कोई लंका जलाते हैं
वो औरंगजेब था दरबार में धोखा दिया उसने
शिवाजी तब भी गौहरबानो की इज्जत बचाते हैं
अतिथि को देवता केवल सनातन धर्म कहता है
गगन के चाँद से मामा का हम रिश्ता निभाते हैं
कभी सरहद पे जाकर देखना भारत की सेना को
मिठाई बाँटकर दुश्मन को दीवाली मनाते हैं
वतन की आबरू क्या है शहीदों ने किया साबित
ये भारत माँ की अन्तिम सांस तक ड्यूटी निभाते हैं
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4407 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चाकारों का हौसला बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका ।ज्योति जी नमस्कार
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
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