चित्र सभार गूगल |
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राष्ट्र को समर्पित एक ग़ज़ल -
हर लाइलाज मर्ज़ का अब तो निदान हो
सबके लिए समानता का संविधान हो
हिन्दु,मुसलमाँ, सिक्ख,ईसाई न हो कोई
पहले वो हिंदुस्तानी हो ऐसा विधान हो
सत्ता के लोभ में जो यहाँ मुल्क बेचते
उनके लिए फिर काला पानी अंडमान हो
इस देश को बचाइये मजहब की आग से
भारत की जिसमें जय हो वो पूजा अज़ान हो
उसको सदन में भेजिए हरगिज न आप भी
जिसकी ज़ुबाँ पे देश विरोधी बयान हो
जलसे,जुलुस,दंगे न शाहीन बाग़ हो
कानून की सड़क पे सभी का चालान हो
कुछ मानसिक विक्षिप्त जो सेना को कोसते
बुलडोज़रों की ज़द में अब उनका मकान हो
अब राम को अयोध्या न वनवास दे कभी
सरयू किनारे शंख बजे दीपदान वो
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
चित्र सभार गूगल |
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (1-5-22) को "अब राम को बनवास अयोध्या न दे कभी"(चर्चा अंक-4417) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
'कुछ मानसिक विक्षिप्त जो सेना को कोसते
ReplyDeleteबुलडोज़रों की ज़द में अब उनका मकान हो'--- वाह क्या खूब कहा है!
वाह!बेहतरीन ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आदरणीय , जय हिन्द ।
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