Wednesday, 27 April 2022

एक गज़ल-काशी कबीर की

 

स्वामी रामानंदाचार्य जी

हर हर महादेव

इस वर्ष ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होना है इसलिए लगातार सृजन जारी है।आपको कमेंट के लिए परेशान करना मेरा उद्देश्य नहीं है। आप् सभी को कुछ अच्छा लगे तभी टिप्पणी करें।आपका दिन शुभ हो।


तुलसी की,रामानन्द की,काशी कबीर की

चन्दन,तिलक की,भस्म की,मिट्टी अबीर की


संतों के संग गृहस्थ की पूजा औ आरती

राजा के साथ रंक की काशी फ़क़ीर की


इसका महात्म्य वेद में,दर्शन,पुराण में

इसके हवन में गन्ध है खिलते पुंडीर की


शिव के त्रिशूल पर बसी काशी,अजर अमर

रैदास,कीनाराम की गोरख,गंभीर की


राजा विभूति  सिंह की प्रजा बोलती थी जय

अस्सी,गोदौलिया की या फिर लहुरावीर की


शिक्षा की पुण्य भूमि यहीं मालवीय की है

संगीत, नृत्य,पान की,थाली ये खीर की


भैरव का घर है,बुद्ध भी,हनुमान राम के

ख़ुशबू है सारनाथ में बहते समीर की 


संध्या को मंदिरों में नागाड़े भी शंख भी

भूली न आरती कभी गंगा के तीर की 


इसमें प्रसाद,प्रेमचंद,भारतेन्दु हैँ

बिस्मिल्ला खां की शहनाई, ग़ज़लें नज़ीर की

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

काशी नरेश स्वर्गीय विभूति नारायण सिंह


6 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4414 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति चर्चा मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद
    दिलबाग

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  2. काशी की संस्कृति सभ्यता और दर्शन को समाए सुंदर रचना।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. kashi ka varnan karti sunder kriti .

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  4. बहुत खूब..क्‍या खूब ही लिखी है ग़ज़ल तुषार जी

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