Saturday 30 April 2022

एक ग़ज़ल -तमाम चाँद नदी की लहर मे

 

चित्र सभार गूगल

एक गज़ल- तमाम यादों की ख़ुशबू


बिछड़ गया है वो लेकिन इसी ज़हान में है 

तमाम यादों की ख़ुशबू अभी मकान में है


बहुत करीब से हँसकर किसी ने बात किया

जरा सी बात मोहब्बत की अब भी कान में है


तमाम चाँद नदी की लहर में पाँव धरे

कोई है काँजीवरम में कोई शिफ़ान में है


जो बात सादगी अपनी सलोनी मिट्टी में

नहीं सुकून वो पेरिस नहीं मिलान में है


अभी तो पंख खुले हैँ गिरेगा,सम्हलेगा

अभी जमीं पे परिंदा नई उड़ान में है


कोई कबीर कहीं हो तो उससे बात करें

यहाँ की सुबह तो कीर्तन में या अज़ान में है


चलो सुनाओ किसी की ग़ज़ल अदा से मगर

तमाम रंग की ख़ुशबू तुम्हारे पान में है

कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र सभार गूगल


6 comments:

  1. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 01/05/2022 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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    1. हार्दिक आभार आपका भाई कुलदीप जी

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  2. बहुत ही सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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  3. वाह!खूबसूरत सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर नमस्ते

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