चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
झुलसाती हुई ग्रीष्म है,बरसात कहाँ है
मौसम में भी मौसम की तरह बात कहाँ है
इक जंग छिड़ी और वो रुकती भी नहीं है
दुनिया को बचाने की करामात कहाँ है
फिर वक़्त कटोरे में ज़हर घोल रहा है
सच बोलने वाला मगर सुकरात कहाँ है
कुछ फूल लिए हाथों में ये कौन मुख़ातिब
उलझा हूँ कभी मेरी मुलाकात कहाँ है
अब कैसे मोहब्बत के कोई गीत लिखेगा
अब चाँद-चोकोरों से सजी रात कहाँ है
जयकृष्ण राय तुषार
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-4-22) को "शुभ सुमंगल वितान दे..." (चर्चा अंक-4396) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
------------
कामिनी सिन्हा
आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteफिर वक़्त कटोरे में ज़हर घोल रहा है
ReplyDeleteसच बोलने वाला मगर सुकरात कहाँ है
वाह क्या बात है, राय तुषार साहब, वेहतरीन प्रसतुति
हार्दिक आभार आपका
Delete