Saturday, 9 April 2022

एक ग़ज़ल-मौसम में भी

चित्र साभार गूगल


एक ग़ज़ल-

झुलसाती हुई ग्रीष्म है,बरसात कहाँ है

मौसम में भी मौसम की तरह बात कहाँ है


इक जंग छिड़ी और वो रुकती भी नहीं है

दुनिया को बचाने की करामात कहाँ है


फिर वक़्त कटोरे में ज़हर घोल रहा है

सच बोलने वाला मगर सुकरात कहाँ है


कुछ फूल लिए हाथों में ये कौन मुख़ातिब

उलझा हूँ कभी मेरी मुलाकात कहाँ है


अब कैसे मोहब्बत के कोई गीत लिखेगा

अब चाँद-चोकोरों से सजी रात कहाँ है

जयकृष्ण राय तुषार




4 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-4-22) को "शुभ सुमंगल वितान दे..." (चर्चा अंक-4396) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  2. फिर वक़्त कटोरे में ज़हर घोल रहा है
    सच बोलने वाला मगर सुकरात कहाँ है

    वाह क्या बात है, राय तुषार साहब, वेहतरीन प्रसतुति

    ReplyDelete

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