चित्र साभार गूगल |
लोकभाषा कविता
खेतवा में गाँव कै परान मोरे भइया
करा गाँव और खेत कै
बखान मोरे भइया
खेतवा में गाँव कै
परान मोरे भइया ।
मानसून कै जुआ
खेत औ किसानी
नदिया के पेटवा मा
अँजुरी भर पानी
दुनो ही फसीलिया में
ढोर से तबाही
झगड़ा पड़ोसियन से
कोर्ट में गवाही
मलकिन कै बिछिया
हेरान मोरे भइया ।
बढ़ल बा आबादी
घरे-घरे बँटवारा
लहुरा क आँगन
बड़े भाय कै ओसारा
दतुअन कै बात कहाँ
नीम भी कटाइल
नई पीढ़ी गाँव छोड़
शहर में पराइल
याद आवै जांत्ता कै
पिसान मोरे भइया ।
दुअरा न हाथी,घोड़ा
नाहीं बैल,गाय बा
जहाँ देखा बम-गोली
रोज ठांय-ठांय बा
बंसवट,करील नहीं
तीतर ना महोखा
गोबरी दालान में न
मड़ई झरोखा
खरहा, सियार न
मचान मोरे भइया ।
रजवाहा गाद भइल
दिखै नहीं मछली
सावन भयल सूना
नाहीं झूला ,नहीं कजली
हीरा बुल्लू ,रामदेव क
बिरहा करताल कहाँ
फागुन में भी रंग नहीं
चैता, चौपाल कहाँ
हुक्का नहीं भाँग
नहीं पान मोरे भइया।
आपस में परेम नहीं
मेल-जोल गायब
केहू बा कलेक्टर बाबू
केहू बा विधायक
ना कउनो नौटंकी,कुश्ती
नहीं रामलीला
कूकर कै सिटी बजै
गुम भयल पतीला
बूढ़वन क घटल
बहुत मान मोरे भइया।
बबुरे कै पेड़ नहीं
नहीं बा खतोना
पत्तल कै ठाट गयल
बन्द भयल दोना
मंडप कै रीति विदा
होटले में शादी
कोहबर कै गीत
कहाँ गावैं अब दादी
पियरी क भइल अब
उठान मोरे भइया।
फोन लिखै, फोन सुनै
चिट्ठी, चौपाती
बाबा के घरोहिया मा
दिया नहीं बाती
ननद के चिकोटी
नाहीं काटै भौजाई
चौका-चूल्हा अउर
खाना परसै अब दाई
सुखवन ना,कोठिला
में धान मोरे भइया ।
रोजी-रोटी नाहीं कउनो
नाहीं घर मे योद्धा
कैसे जइहैं बाबू
माई काशी अ अयोध्या
काकी के हौ मोतियाबिंद
कक्का के मलेरिया
सातौ दिन अन्हरिया हौ
ना कब्बो अंजोरिया
पढ़ा तानी मुंशी कै
गोदान मोरे भइया ।
नाही अब सरंगी लेइके
जोगी बाबा गावैं
दुलहिन क डोलिया
कहार न उठावें
नाहीं कत्तों धोबिया क
नाच न कहरवा
महुआ क लपसी नाहीं
आम कै अचरवा
जागा देखा सोने कै
विहान मोरे भइया।
ना केहू भगतसिंह
हउवै ना झाँसी कै रानी
भारत माँ के घर घर
रहलै पहिले बलिदानी
नर्मदा,कावेरी,सरयू
गंगा के बचावा
देसवा कै भार सबै
मिली के उठावा
देशवा क माटी ई
महान मोरे भइया ।
जयकृष्ण राय तुषार
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बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 18 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 18 अप्रैल 2022 ) को 'पर्यावरण बचाइए, बचे रहेंगे आप' (चर्चा अंक 4404) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteवर्तमान हालातों का जीवंत वर्णन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम
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