Saturday 23 April 2022

एक ग़ज़ल-मोहब्बत के ख़तों से

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल-मोहब्बत के ख़तों से


तमाशा देखिएगा आप भी सरकार अच्छा है

मैं जैसा हूँ, मेरा नाटक,मेरा किरदार अच्छा है


जो दरपन सच दिखाता है मुझे अच्छा नहीं लगता

मेरी तारीफ़ करता जो वही अख़बार अच्छा है


अगर इतनी मुलाक़ातों में तुम कुछ कह नहीं सकते

मोहब्बत के ख़तों से इश्क़ का इज़हार अच्छा है


तुम्हारी राजशाही को अगर सजदा ही करना है

अयोध्या जी में सीताराम का दरबार अच्छा है


यहाँ हर चीज अपनी हैसियत से देखना साहब

यहाँ खुशबू भी बिकती है यहाँ बाज़ार अच्छा है


नदी के इस तरफ़ मलबा,मुसीबत,रेत चमकीली

कभी तुम देखना मौसम नदी के पार अच्छा है


हमारी नींद में हर रोज कुछ सपने बदलते हैं

कभी ये दून, डलहौजी कभी हरिद्वार अच्छा है

शायर जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


8 comments:

  1. बेहतरीन रचना

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-4-22) को "23 अप्रैल-पुस्तक दिवस"(चर्चा अंक-4409) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर प्रणाम

      Delete
  3. तमाशा देखिएगा आप भी सरकार अच्छा है

    मैं जैसा हूँ, मेरा नाटक,मेरा किरदार अच्छा है



    जो दरपन सच दिखाता है मुझे अच्छा नहीं लगता

    मेरी तारीफ़ करता जो वही अख़बार अच्छा है
    बहुत ही शानदार रचना

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  4. वाह!!!!
    क्या बात...
    लाजवाब गजल।

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

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