Thursday 28 April 2022

एक गीत -वही बनारस जिसमें रोली -चन्दन टीका है

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत-पहले वाली काशी उसको और मुझे है याद


पहले वाली

काशी मुझको

और उसे है याद ।

अब वह

काशी नहीं

पढ़ रहा हूँ उसका अनुवाद।


बिना कचौड़ी गली

यहाँ का

मौसम फीका है,

वही बनारस

जहाँ घाट पर

चन्दन टीका है,

कोतवाल

भैरव,शिव जी का

दर्शन है अहलाद ।


इसमें कन्नड़ 

गुजराती, 

मलयालम, उड़िया है,

यह संतों 

का तीर्थ-

तीर्थ जादू की पुड़िया है,

वैष्णव

और अघोरी

का माँ गंगा से संवाद ।


नुक्कड़- नुक्कड़

इडली -सांभर

रसगुल्ला,छोला,

नृत्य -गीत

का परीलोक

है बंगाली टोला,

ठुमरी का

आलाप सिखाते

विदुषी को उस्ताद ।


करपात्री -

तैलंग,

विशुद्धानन्द नहीं है आज,

नहीं संत रविदास

न कीनाराम

और कविराज,

घाट -घाट पर

कैसे गूंजे

सुंदर अनहद नाद ।


भाषा बहुत

अनूठी,मौजी

काशी वाली है,

मुंह में

मघई पान दबाए

मीठी गाली है,

का हो गुरू

नमस्ते पहिले

हँसी -ठहाका बाद ।

कवि -जयकृष्ण राय तुषार



चित्र साभार गूगल



4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2022) को चर्चा मंच       "दिनकर उगल  रहा है आग"  (चर्चा अंक-4415)       पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   
     --

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    1. हार्दिक आभार आपका शास्त्री जी।सादर अभिवादन

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  2. काशी की महिमा अपार है, सुंदर रचना

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

      Delete

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