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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल
तितली का इश्क़, बाग का सिंगार ले गया
खिलते ही सारे फूल वो बाज़ार ले गया
मौसम का रंग फीका है, भौँरे उदास हैं
गुलशन का कोई शख्स कारोबार ले गया
उसका ही रंगमंच था नाटक उसी का था
मुझसे चुराके बस मेरा किरदार ले गया
अपने शहर का हाल मुझे ख़ुद पता नहीं
भींगा था कोई धूप में अख़बार ले गया
दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा
कश्ती मैं अपने साथ में बेकार ले गया
आँधी नहीं है फिर भी परिंदो का शोर है
जंगल की शांति फिर कोई गुलदार ले गया
ख्वाबों में गुलमोहर ही सजाता था जो कभी
वो फूल देके मुझको सभी ख़ार ले गया
इस बार भी न दोस्तों से गुफ़्तगू हुई
साहब का दौरा अबकी भी इतवार ले गया
कवि शायर जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
वाह्ह.।।बहुत सुंदर अति मनमोहक गज़ल सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका हृदय से आभार श्वेता जी. नमस्ते
Deleteवाह वाह वाह बेहतरीन रचना 🙏
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार भाई
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteताज़ा हवा का झोंका सारा भारत ले गया ..अभिनंदन..
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteआदरणीय सर, सादर प्रणाम। बहुत सुंदर रचना । जीवन कि दुविधाएं इस रचना में उभर के आईं हैं । अति भावपूर्ण प्रस्तुति। मेरी ब्लॉग जगत पर कुछ दिनों पहले वापसी हुई, कवयितरंगिणी ब्लॉग पर दो कविताएं पोस्ट की हूं। मेरा अनुरोध है कि आप आकर अपना आशीष दें।
ReplyDeleteशुभकामनायें. नमस्ते
Deleteवाह ! तुषार जी ,क्या बात है ! बेहतरीन गजल ..
ReplyDelete!
आपका हृदय से आभार. सादर प्रणाम
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर प्रणाम
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
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