Monday, 11 August 2025

एक ग़ज़ल -मौसम का रंग

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 

खुशबू हवा की तितलियों का प्यार ले गया
खिलते ही सारे फूल वो बाज़ार ले गया 

मौसम का रंग उड़ गया जंगल उदास था 
कोई चमन का सारा कारोबार ले गया 

उसका ही रंगमंच था नाटक उसी का था 
मुझसे चुराके बस मेरा किरदार ले गया 

दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा 
कश्ती मैं अपने साथ में बेकार ले गया 

आँधी नहीं है फिर भी परिंदो का शोर है 
जंगल की शांति फिर कोई गुलदार ले गया 

ख्वाबों में गुलमोहर ही साजता था जो कभी 
वो फूल देके मुझको सभी ख़ार ले गया 

इस बार भी न दोस्तों से गुफ़्तगू हुई 
साहब का दौरा अबकी भी इतवार ले गया 

कवि शायर जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


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एक ग़ज़ल -मौसम का रंग

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