चित्र साभार गूगल |
मौसम का गीत-सँवरा-सँवरा सा मौसम हो
सँवरा-सँवरा
सा मौसम हो
नदियों की कल-कल हो।
सुमुखि पुजारिन
के हाथों में
अक्षत, गंगा जल हो ।
जेठ और वैशाख
फूल के
माथ पसीना छूटे,
कालिदास का
विरही बादल
बारिश बनकर टूटे,
नए-नए
जोड़े की मन्नत
मन में विंध्याचल हो।
यादों की
पुरवाई महकी
अलबम खोल रहे,
कच्चे आमों की
डाली पर
तोते बोल रहे,
मीनाक्षी
आँखों में
दरपन लगा रहे काजल।
गोधूली में
गायों के संग
गूंजे गीत चनैनी,
बचपन की
यादों में खोए
दादा मलते खैनी,
सोच रहे हैं
बंजर,टीला
कैसे समतल हो ।
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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