![]() |
चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत -
सारंगी को
साधो जोगी
बन्द घरों की खिड़की खोलो.
टूटे दिल
उदास मन वालों के
संग कुछ क्षण बैठो बोलो.
झाँक रहे
दिन भर यन्त्रों में
गमले में चंपा मुरझाई,
भूल गया
मौसमी गीत मन
किसे पता कब चिड़िया गाई,
धूल भरे आदमकद
दरपन को
आँचल से पोछो धो लो.
बखरी हुई
उदास ग़ुम हुई
दालानों की हँसी-ठिठोली,
रंगोली के
रंग कृत्रिम हैं
पान बेचता कहाँ तमोली,
कहाँ गए
वो हँसने वाले
याद करो उनको फिर रो लो.
कवि
जयकृष्ण राय तुषार
![]() |
चित्र साभार गूगल |
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |