Sunday, 13 July 2025

मौसम का गीत -ढूँढता है मन

 

चित्र साभार गूगल
ढूंढता है

मन शहर की 
भीड़ से बाहर.
घास, वन चिड़िया 
नदी की धार में पत्थर.

नीम, पाकड़ 
और पीपल की
घनी छाया,
सांध्य बेला 
आरती की 
स्वर्ण सी काया,
चिट्ठियों में
ढक गए हैं फूल से अक्षर.

तन बदन दिन
घास मिट्टी
होंठ पर मुरली,
दो अपरिचित
कर रहे हैं
धूप की चुगली,
याद आए
अल्पनाओं से सजे कोहबर.

साज
मौसम का
परिंदे गा रहे ठुमरी,
गाँव-घर
सिवान फिर
गूंजती कजरी,
घाट काशी के
लगे फिर बोलने हर हर.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


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मौसम का गीत -ढूँढता है मन

  चित्र साभार गूगल ढूंढता है मन शहर की  भीड़ से बाहर. घास, वन चिड़िया  नदी की धार में पत्थर. नीम, पाकड़  और पीपल की घनी छाया, सांध्य बेला  आरती...