चित्र साभार गूगल |
एक गीत-नींद से कहना न टूटे
हँस रही
इन घाटियों के
माथ पर बिंदी हरी है ।
नींद से
कहना न टूटे
स्वप्न में इक जलपरी है ।
झील में
वंशी बजाते
गिन रहा है लहर कोई,
रक्तकमलों
से सुवासित
छू रहा है अधर कोई,
पंख
टूटेंगे न छूना
यार तितली बावरी है।
देह भींगी
भागती हैं
लाज से बोझिल दिशाएं,
खिड़कियों
के पार कोई
लिख रहा अपनी कथाएं,
छेड़ता है
रोज लेकिन
ज़ुर्म से मौसम बरी है ।
चाँदनी सी
रातरानी
रंग बेला के सुहाने,
अर्थ देने
लगे बिलकुल नए
सब गाने पुराने,
टांक लो
ये फूल जूड़े में
निवेदन आखिरी है ।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'मंज़िल न मिले तो न सही (चर्चा अंक 3761) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
भाई रवीन्द्र जी आपका हार्दिक आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteबहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
ReplyDeleteहाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद
हार्दिक आभार |शुभकामनायें |
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