Sunday, 12 July 2020

एक गीत -नींद से कहना न टूटे

चित्र साभार गूगल

एक गीत-नींद से कहना न टूटे

हँस रही
इन घाटियों के
माथ पर बिंदी हरी है ।

नींद से
कहना न टूटे
स्वप्न में इक जलपरी है ।

झील में
वंशी बजाते
गिन रहा है लहर कोई,
रक्तकमलों
से सुवासित
छू रहा है अधर कोई,

पंख
टूटेंगे न छूना
यार तितली बावरी है।

देह भींगी
भागती हैं
लाज से बोझिल दिशाएं,
खिड़कियों
के पार कोई
लिख रहा अपनी कथाएं,

छेड़ता है
रोज लेकिन
ज़ुर्म से मौसम बरी है ।

चाँदनी सी
रातरानी
रंग बेला के सुहाने,
अर्थ देने
लगे बिलकुल नए
सब गाने पुराने,

टांक लो
ये फूल जूड़े में
निवेदन आखिरी है ।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

11 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'मंज़िल न मिले तो न सही (चर्चा अंक 3761) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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    Replies
    1. भाई रवीन्द्र जी आपका हार्दिक आभार

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  2. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर रचना

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  4. बहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
    हाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे

    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
    धन्यवाद

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार |शुभकामनायें |

      Delete

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