Monday, 3 September 2012

एक गीत -प्यार के हम गीत रचते हैं

चित्र -गूगल से साभार 
प्यार के हम गीत रचते हैं इन्हीं कठिनाइयों में
खिल रहा है 
फूल कोई 
धान की परछाइयों में |
सो रहे 
खरगोश से दिन 
पर्वतों की खाइयों में |

ज्वार पर 
देखो समय के 
गीत पंछी गा रहे हैं ,
बादलों के 
नर्म फाहे 
चाँद को सहला रहे है ,
देखकर 
तुमको यहीं हम 
खो गए पुरवाइयों में |

हलद 
बांधे चल रहा 
मौसम हरे रूमाल में ,
लगे हैं 
खिलने गुलाबी-
कँवल मन के ताल में ,
साँझ ढलते 
मन हमारा 
खो गया शहनाइयों में |

कास -बढ़नी 
को लगे फिर 
चिठ्ठियाँ लिखने उजाले ,
आँख पर 
सीवान के 
चश्में चढ़े हैं धूप वाले ,
एक आंचल 
इत्र भींगा 
उड़ रहा अमराइयों में |

झील की 
लहरें नहाकर 
रेशमी लट खोलती हैं ,
चुप्पियों 
के वक्त भी 
ऑंखें बहुत कुछ बोलती हैं ,
प्यार के 
हम गीत 
रचते हैं इन्हीं कठिनाइयों में |
चित्र -गूगल से साभार 

24 comments:

  1. वाह...
    बहुत बहुत सुन्दर गीत....
    मनभावन प्रस्तुति...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  2. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|

    ReplyDelete
  3. वाह...
    बहुत-बहुत सुन्दर प्रस्तुति....
    बेहतरीन....
    :-)

    ReplyDelete
  4. वाह! बहुत ही सुन्दर वा अनूठे बिम्ब उकेरती एक उत्कृष्ट रचना ...

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर कविता..

    ReplyDelete
  6. प्यार के गीत रचकर आपने मन मोह लिया है। बिम्बों का उत्तम प्रयोग लुभाता है।

    ReplyDelete
  7. वाह! बेहतरीन नवगीत है।..बधाई।

    मेरा पागलपन देखिए..मैं बहुत देर तक सांझ की अनुभूति लाने के लिए रेशमी में स्वर्ण घोलने के चक्कर में पड़ा था लेकिन घोल नहीं पाया। :(

    अंतिम बंद लाज़वाब है।

    ReplyDelete
  8. एक आंचल
    इत्र भींगा
    उड़ रहा अमराइयों में |


    तुषार भाई की जय हो

    ReplyDelete
  9. आप सभी का बहुत -बहुत आभार |

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन सरस रसमयी सृजन जलतरंग सा मन को उद्वेलित करते हुए ...... प्रशंसनीय ....बधाईयाँ जी, राय साहब

    ReplyDelete
  11. namaskaat tushar ji
    bahut sundar pyar ka geet ...
    बादलों के
    नर्म फाहे
    चाँद को सहला रहे है ,
    देखकर
    तुमको यहीं हम
    खो गए पुरवाइयों में |

    ..man bhavan..badhai aapko

    ReplyDelete
  12. सुंदर प्रेम गीत के लिए बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  13. एक खूबसूरत एहसास भरा गीत !

    ReplyDelete
  14. अति सुन्दर गीत..मन को महकाता हुआ..

    ReplyDelete
  15. कास -बढ़नी
    को लगे फिर
    चिठ्ठियाँ लिखने उजाले ,
    आँख पर
    सीवान के
    चश्में चढ़े हैं धूप वाले ,
    एक आंचल
    इत्र भींगा
    उड़ रहा अमराइयों में |

    इस बंद पर मैं तो अवाक् हूँ. चूँकि यह आपका बंद है सो हृदय कह रहा है कि संयत हो जाऊँ..

    झील की
    लहरें नहाकर
    रेशमी लट खोलती हैं ,
    चुप्पियों
    के वक्त भी
    ऑंखें बहुत कुछ बोलती हैं ,
    प्यार के
    हम गीत
    रचते हैं इन्हीं कठिनाइयों में |

    इस बंद पर ढेरम्ढेर बधाइयाँ स्वीकारें, तुषारभाईजी. यदि रचना के लिये इस तरह के वातावरण का होना जरूरी है तो काश आपकी कठिनाइयाँ सदा बनी रहें..
    बधाई-बधाई-बधाई........

    --सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

    ReplyDelete
  16. प्यार के
    हम गीत
    रचते हैं इन्हीं कठिनाइयों में |

    sundar soch.....bahut sundar aur sakaratmak rachna ...badhaii aapko ...

    ReplyDelete
  17. सुन्दर ... बहुत ही मधुर गीत ... मनभावन प्रस्तुति ...

    ReplyDelete
  18. झील की
    लहरें नहाकर
    रेशमी लट खोलती हैं ,
    चुप्पियों
    के वक्त भी
    ऑंखें बहुत कुछ बोलती हैं ,

    ...वाह! बहुत भावपूर्ण और मनभावन...

    ReplyDelete
  19. श्रृंगारिकता से ओतप्रोत एक और प्रभावी रचना ..मुझे फुर्सत से जरा फोन करियेगा ! आपका नबर गायब है !

    ReplyDelete
  20. सो रहे खरगोश से दिन पर्वतों की खाइयों में'
    वाह! क्या बात कही है.
    बहुत ही मनमोहक गीत.

    ReplyDelete
  21. वाह! तुषार जी, शृंगार रस सराबोर आपकी रचनाएँ अतुलनीय हैं। कई रचनाएँ पढ़ी। इन पक्तियों कोपढकर विस्मित हूँ---
    एक आंचल
    इत्र भींगा
    उड़ रहा अमराइयों में !
    बेजोड़ हैं ये पंक्तियाँ👌👌👌
    हार्दिक शुभकामनायें🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीया रेणु जी

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक गीत -सर्द मौसम

  चित्र साभार गूगल  एक गीत -सर्द मौसम  बर्फ़ में गुलमर्ग  औली  और शिमला है. सर्द मौसम में  गुलाबी  कोट निकला है. छतें  स्वेटर बुन रही हैं  भा...