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चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत -
सारंगी को
साधो जोगी
बन्द घरों की खिड़की खोलो.
टूटे दिल
उदास मन वालों के
संग कुछ क्षण बैठो बोलो.
झाँक रहे
दिन भर यन्त्रों में
गमले में चंपा मुरझाई,
भूल गया
मौसमी गीत मन
किसे पता कब चिड़िया गाई,
धूल भरे आदमकद
दरपन को
आँचल से पोछो धो लो.
बखरी हुई
उदास ग़ुम हुई
दालानों की हँसी-ठिठोली,
रंगोली के
रंग कृत्रिम हैं
पान बेचता कहाँ तमोली,
कहाँ गए
वो हँसने वाले
याद करो उनको फिर रो लो.
महुआ, पीपल
नीम-आम के
नीचे कजरी बैठ रम्भाती,
पीकर पानी
नदी-ताल का
वन में खाते नमक चपाती,
डांट पिता की
याद करो फिर
माँ की यादों के संग हो लो.
कवि
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
स्मृतियां भले ही सुखद हो पर मन को कसक से भर देती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत सर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २९ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका हार्दिक आभार
Deleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार. सादर अभिवादन
Deleteवक्त के साथ कितना कुछ बीत गया ....बस याद बाकी है ।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteयादों के वन में ले जाता बहुत ही प्यारा गीत
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
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