Monday, 28 July 2025

एक गीत -सारंगी को साधो जोगी

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -

सारंगी को 

साधो जोगी 

बन्द घरों की खिड़की खोलो.

टूटे दिल 

उदास मन वालों के 

संग कुछ क्षण बैठो बोलो.


झाँक रहे 

दिन भर यन्त्रों में 

गमले में चंपा मुरझाई,

भूल गया 

मौसमी गीत मन 

किसे पता कब चिड़िया गाई,

धूल भरे आदमकद 

दरपन को 

आँचल से पोछो धो लो.


बखरी हुई

उदास ग़ुम हुई

दालानों की हँसी-ठिठोली,

रंगोली के

रंग कृत्रिम हैं

पान बेचता कहाँ तमोली,

कहाँ गए

वो हँसने वाले

याद करो उनको फिर रो लो.


महुआ, पीपल

नीम-आम के

नीचे कजरी बैठ रम्भाती,

पीकर पानी

नदी-ताल का

वन में खाते नमक चपाती,

डांट पिता की

याद करो फिर

माँ की यादों के संग हो लो.

कवि

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

10 comments:

  1. स्मृतियां भले ही सुखद हो पर मन को कसक से भर देती है।
    बहुत सुंदर गीत सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २९ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  2. वाह बहुत सुन्दर

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार. सादर अभिवादन

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  4. वक्त के साथ कितना कुछ बीत गया ....बस याद बाकी है ।

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  5. यादों के वन में ले जाता बहुत ही प्यारा गीत

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