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चातक पक्षी |
एक ताज़ा गीत
सूखे जंगल
का सारा
दुःख हरते हैं.
झीलों से
उड़कर ये
बादल घिरते हैं.
आसमान में
कितने
चित्र बनाते हैं,
महाप्राण
बन
बादल राग सुनाते हैं.
फूल -
पत्तियों पर
अमृत बन झरते हैं.
कजली गाते
नीम डाल पर
झूले हैं,
कमल, कुमुदिनी
चंपा
गुड़हल फूले हैं,
हर मौसम में
रंग
फूल ही भरते हैं.
मेघों के
मौसम भी
चातक प्यासा है,
दूर कहीं
खिड़की में
हँसी बतासा है,
दिन भर
किस्से याद
पुराने आते हैं.
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चित्र साभार गूगल |
गीतकार -जयकृष्ण राय तुषार
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