Sunday, 4 May 2025

एक गीत -गुलमोहर खिलते हुए

 

गुलमोहर चित्र साभार गूगल

एक गीत -गुलमोहर खिलते हुए 


ग्रीष्म के 
तपते हुए दिन 
गुलमोहर खिलते हुए.
आइये 
कुछ मुस्कुरा लें 
सफ़र में चलते हुए.

पर्वतों की
घाटियों में
एक सुन्दर झील है,
सोचिए मत
ज़िन्दगी की
राह कितने मील है,
पाँव तो
चलते रहेंगे
धूप में जलते हुए.

माथ पर
बिंदी सजाए
हँस रहा श्रृंगार दरपन,
झर गए
कुछ फूल बासी
खिल रहे कुछ नए उपवन,
स्वप्न भूले
याद आए
आँख को मलते हुए.

चित्र कितने
रंग कितने
खुशबुओं का खत लिए,
प्रेम के संग
विरह वाले
गीत लिखकर हम जिए,
कुछ परिंदे
गा रहे हैं
शाख पर हिलते हुए.

दीप आँचल में
सजाए
कौन चंदन मुख छिपाए,
ढोलकी की
थाप पर
ये साँझ मंगल गीत गाए,
माँ रफूगर
खुली रिश्तों 
की सिवन सिलते हुए.

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 05 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हार्दिक आभार भाई साहब

      Delete
  2. वाह! अद्भुत!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

ग़ज़ल संग्रह भेंट -श्री प्रवीण पटेल सांसद फूलपुर

 ग़ज़ल संग्रह सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है योग दिवस पर माननीय सांसद फूलपुर आदरणीय श्री प्रवीण पटेल जी एवं माननीय विधायक फूलपुर श्री दी...