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गुलमोहर चित्र साभार गूगल |
एक गीत -गुलमोहर खिलते हुए
ग्रीष्म के
तपते हुए दिन
गुलमोहर खिलते हुए.
आइये
कुछ मुस्कुरा लें
सफ़र में चलते हुए.
पर्वतों की
घाटियों में
एक सुन्दर झील है,
सोचिए मत
ज़िन्दगी की
राह कितने मील है,
पाँव तो
चलते रहेंगे
धूप में जलते हुए.
माथ पर
बिंदी सजाए
हँस रहा श्रृंगार दरपन,
झर गए
कुछ फूल बासी
खिल रहे कुछ नए उपवन,
स्वप्न भूले
याद आए
आँख को मलते हुए.
चित्र कितने
रंग कितने
खुशबुओं का खत लिए,
प्रेम के संग
विरह वाले
गीत लिखकर हम जिए,
कुछ परिंदे
गा रहे हैं
शाख पर हिलते हुए.
दीप आँचल में
सजाए
कौन चंदन मुख छिपाए,
ढोलकी की
थाप पर
ये साँझ मंगल गीत गाए,
माँ रफूगर
खुली रिश्तों
की सिवन सिलते हुए.
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 05 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार भाई साहब
Deleteसुंदर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteवाह! अद्भुत!!
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
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