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चित्र साभार गूगल |
ग़ज़ल -लोटे के जल में फूल रखते हैं
अतिथियों के लिए लोटे के जल में फूल रखते हैं
मगर दुश्मन के सीने पर सदा तिरशूल रखते हैं
जहाजें पाल वाली हों तो सागर से न टकराना
हवा को मोड़ते हैं हम नहीं मस्तूल रखते हैं
अमन की राह में उजले कबूतर भी उड़ाते हैं
मगर रंजिश में उत्तर भी बहुत माकूल रखते हैं
हमारी झील में शतदल के सारे रंग मिलते हैं
काँटीली झाड़ियों के पेड़ हम निर्मूल रखते हैं
हम तीरथ पर निकलने वालों को पानी पिलाते हैं
न हम जजिया लगाते हैं नहीं महसूल रखते हैं
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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