Friday 19 April 2019

एक गीत-अनवरत जल की लहर सी

चित्र-गूगल से साभार

एक गीत-अनवरत जल की लहर सी


समय का
उपहास कैसे
सह रही हो तुम ।
अनवरत
जल की
लहर सी बह रही हो तुम ।

भागवत
की कथा हो
या गीत मौसम के,
किसी
भी दीवार पर
जाले नहीं ग़म के,
किस
तरह की
साधना में रह रही हो तुम।

खिल रहे
मन फूल जैसे
रातरानी गंध वाले,
बिना
कांजीवरम के
भी रंग हैं तेरे निराले,
बिना
शब्दों के बहुत
कुछ कह रही हो तुम ।

गाल पर
जूड़े बिखर कर
सो रहे होंगे,
बीज
सपनों के नयन
फिर बो रहे होंगे,
छाँह
आँगन में
सजाकर दह रही हो तुम।

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