एक गीत -बापू ! रहे हिमालय
बापू रहे
हिमालय ,उनका
दर्शन गोमुख धारा है ।
यह जलती
मशाल जैसा है
जहाँ-जहाँ अँधियारा है ।
रंगभेद के
प्रबल विरोधी
गिरमिटिया कहलाते थे,
चरखा-खादी
लिए साथ में
रघुपति राघव गाते थे,
सत्य अहिंसा
मानवता का नारा है ।
छुआछूत
अभिशाप बताते
रहे स्वदेशी को अपनाते,
हिन्दू-मुस्लिम
सिक्ख-ईसाई
सादर सबको गले लगाते,
आज़ादी के
अनगिन तारों में
गाँधी ध्रुवतारा है ।
लड़े गुलामी
और दासता की
अभेद्य प्राचीरों से,
एक लुकाठी
लड़ी हजारों
बन्दूकों-शमशीरों से,
चम्पारण
दांडी का नायक
विजयी था,कब हारा है?
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24.10.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3498 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आपका हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 24 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteरंगभेद के
ReplyDeleteप्रबल विरोधी
गिरमिटिया कहलाते थे,
चरखा-खादी
लिए साथ में
रघुपति राघव गाते थे,
सत्य अहिंसा
मन्त्र उन्ही का
मानवता का नारा है ।
गाँधी जी को समर्पित बहुत ही उत्कृष्ट सृजन
वाह!!!
आपका हृदय से आभार
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार सर
Deleteगांधी जी विचारों को रेखांकित करती बहुत सुंदर और सारगर्भित रचना।
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार सर
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