Saturday, 11 May 2019

एक गीत-पियराये पत्तों से





चित्र-साभार गूगल

एक गीत-पियराये पत्तों से

पियराये
पत्तों से
हाँफती जमीन ।
उड़ा रहीं
राख-धूल
वादियाँ हसीन ।

दूर कहीं
मद्धम सा
वंशी का स्वर,
पसरा है
जंगल में
सन्नाटा-डर,
चीख रहे
पेड़ों को
चीरती मशीन ।

सूख रहीं
हैं नदियाँ
सौ दर्रे ताल में,
अधमरी
मछलियाँ
हैं मौसम के जाल में,
फूलों में
गन्ध नहीं
भ्रमर दीन-हीन ।
चित्र-साभार गूगल

4 comments:


  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (12-05-2019) को

    "मातृ दिवस"(चर्चा अंक- 3333)
    पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    ....
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब... ,सादर नमन

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ...
    लाजवाब नव गीत है ...

    ReplyDelete

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