Sunday, 14 April 2019

एक गीत -आकाशी गुब्बारों को

चित्र -गूगल से साभार 


एक गीत -
आकाशी गुब्बारों को 

किसको चुनें
जातियों को या 
रंग -बिरंगे नारों को |
आज़ादी 
थक गयी उड़ाकर 
आकाशी गुब्बारों को  |

राजनीति में 
जुमलेबाजी- 
भाषण कुछ अय्यारी है ,
लोकतंत्र में 
कुछ परिवारों 
की ही ठेकेदारी है ,
गंगाजल से 
धोना होगा 
संसद के गलियारों को |

केवल  -अपनी 
भरे तिजोरी 
जो भी आते -जाते है ,
अपने -अपने 
धर्मग्रन्थ की 
झूठी कसमें खाते हैं |
अंधी न्याय 
व्यवस्था देती 
न्याय कहाँ लाचारों को |

नक्सलवादी-
भ्रष्टाचारी 
कुछ नेता अभिमानी हैं ,
कुछ भारत में 
रहकर के भी 
दिल से पाकिस्तानी हैं ,
गले लगाते 
कलमकार ,
कुछ अभिनेता, गद्दारों को |

राष्ट्रधर्म -
ईमान हमारा 
सदियों से ही खोया है ,
चीरा -टाँके 
लगे हमेशा 
संविधान भी रोया है ,
सब अपना 
दायित्व भूलकर 
याद रखे अधिकारों को |

आँख -कान 
कुछ बन्द न रखना 
इनकी -उनकी सुनियेगा ,
जिसका 
अच्छा काम रहा हो 
उसको प्रतिनिधि चुनियेगा ,
कद -काठी 
सब नाप-जोख के 
रखना चौकीदारों  को |

चित्र -साभार गूगल 

चित्र -साभार गूगल 


2 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-04-2019) को "भीम राव अम्बेदकर" (चर्चा अंक-3306) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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