वरिष्ठ हिंदी कवि बुद्धिसेन शर्मा |
माँ गंगा पर कवि -बुद्धिसेन शर्मा के कुछ दोहे
सदा रही है विश्व में भारत -भूमि अनन्य
गंगा ने आकर किया इसे और भी धन्य
पल पल मिलता है मुझे माँ तेरा मकरंद
मेरे चिन्तन में घुली गंगाजल की गंध
मिटे सदा के वास्ते दुखी हृदय की पीर
आप कभी आकर बसे गंगा माँ के तीर
कर फैलाते घाट पर निर्धन औ धनवान
जो माँगा सबको दिया आन-बान सम्मान
गंगा माँ तो है अमर कवि भी समयातीत
हम दोनों रह जायेंगे समय जायेगा बीत
माँ सुरसरि के तीर पर पड़े हजारों लोग
हर लेती है माँ सदा जैसा भी हो रोग
गंगाजल जिनके लिए जीवन का पाथेय
तीन लोक की संपदा उनके आगे हेय
श्रृंगवेरपुर में लगा कवियों का दरबार
बुद्धिसेन चन्दन घिसें टीका करें तुषार
दिनांक 22-02-2016 को श्रृंगवेरपुर रामवन गमन का स्थान में एक कवि सम्मेलन हुआ जिसमे गंगा पर ही कविता पढ़ना था |आयोजन E.Z.C.C.KOLKATA का था |संचालन श्लेष गौतम का था |चित्र -गूगल और गुफ्तगू से साभार ]
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-02-2016 को चर्चा मंच पर विचार करना ही होगा { चर्चा - 2263 } में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें. और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeleteमदन मोहन सक्सेना
बहुत बढ़िया कविता...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दोहे
ReplyDeleteआप सभी का शुक्रिया
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