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एक गीत-
नदियाँ सूखीं मल्लाहों की प्यास बुझाने में
राजनीति की
बिगड़ी भाषा
कौन बचाएगा ?
आगजनी
में सब शामिल हैं
कौन बुझाएगा ?
राजनीति का,
बच्चों का
स्कूल बचाना होगा,
पंख तितलियों के
आँधी से
फूल बचाना होगा,
शहरों में
अब गीत
मौसमी जंगल गाएगा ।
राहजनी में
रामकृष्ण के
सपनों का बंगाल,
ख़त्म हुई
कानून व्यवस्था
लगता यह पाताल,
विधि के
शासन का पीपल
कब तक मुरझाएगा ।
संस्कार
शब्दार्थ खो
गए नये जमाने में,
नदियाँ सूखीं
मल्लाहों की
प्यास बुझाने में,
इनके पेटे से
मलबा को
कौन हटाएगा ?
सबके
अपने-अपने नभ हैं
प्यासे बादल छाए,
कालिदास का
विरही बादल
अपनी व्यथा सुनाए
राजमयूरों को
बागों में
कौन नचाएगा ?
चित्र साभार गूगल |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-05-2019) को "बदलाव की सुखद बयार" (चर्चा अंक- 3338) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'