गीत कवि माहेश्वर तिवारी अपनी धर्मपत्नी श्रीमती बाल सुन्दरी तिवारी के साथ |
हिंदी के सुपरिचित गीतकवि श्री माहेश्वर तिवारी को समर्पित
एक गीत-
फूलते कनेरों में
एक दिया
जलता है
आज भी अंधेरों में ।
पीतल की
नगरी में
फूलते कनेरों में ।
छन्द रहे
प्राण फूँक
आटे की मछली में,
घटाटोप
मौसम में
कौंध रही बिजली में,
शामिल है
सूरज के साथ
वह सवेरों में ।
बस्ती या
गोरखपुर या
उसकी काशी हो,
महक उठे
शब्द-अर्थ
गीत नहीं बासी हो,
"नदी का
अकेलापन
मीठे झरबेरों में ।
आसपास
नहीं कोई
फिर भी बतियाता है,
एक कँवल
लहरों में
जैसे लहराता है,
ओढ़ता
बिछाता है
गीत वह बसेरों में ।
बारिश की
बूँदों सा
ऊँघते पठारों में,
केसर की
खुशबू वह
धुन्ध में चिनारों में,
गीतों को
बाँध दिया
सप्तपदी फेरों में ।
कनेर के फूल चित्र साभार गूगल |
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11 -05-2019) को "
हर दिन माँ के नाम " (चर्चा अंक- 3332) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अनीता सैनी
आपका हृदय से आभार अनीता जी
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