चित्र -साभार गूगल |
एक प्रेमगीत -हरी घास मेड़ों की
जूड़े में
बेला फिर
गूँथ रही शाम |
मौसम
ने आज लिखा
चिट्ठियाँ अनाम |
टहनी की
कलियों ने
पाँव छुए फूल के ,
हँसकर के
गोड़ रंगे
नाउन फिर धूल के ,
पिंजरे में
एक सुआ
कहे राम -राम |
महुआ के
फूल चुए
बीन रहा कोई ,
चुपके से
अलबम को
छीन रहा कोई ,
खिड़की से
झाँक कोई
कर गया प्रणाम |
आम के
टिकोरे हैं
कहीं छाँह पेड़ों की ,
पायल से
बात करे
हरी घास मेड़ों की ,
सोया है
चाँद कोई
लगा रहा बाम |
चित्र -साभार गूगल |
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-04-2019) को "तुरुप का पत्ता" (चर्चा अंक-3307) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह!!! बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteवाह!!! बहुत सुन्दर!!!
ReplyDeleteआदरनीय शास्त्री जी भाई विश्वमोहन जी आप दोनों का हृदय से आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
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