Thursday, 16 May 2019

एक प्रेमगीत-सात रंग का छाता बनकर

चित्र-साभार गूगल

एक प्रेमगीत- सात रंग का छाता बनकर

सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
मौसम के
अलिखित गीतों को
पंचम  सुर-लय में गाती हो ।

जब सारा
संसार हमारा
हाथ छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
हो रात-चाँदनी ,
चौरे पर दिया -बाती हो ।

कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बिजली
मेघों की गर्जन से
हरियाली से भरी धरा है,
बार-बार
पढ़ता घर सारा ,
तुम तो एक सगुन पाती हो ।

भूखी-प्यासी
कजरी गैया
पल्लू खींचे, तुम्हें पुकारे,
माथे पर
काजल का टीका
जादू,टोना,नज़र उतारे,
सबकी प्यास
बुझाने में तुम
स्वयं नदी सी हो जाती हो ।


चित्र-साभार गूगल

9 comments:


  1. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत बहुत सरस और सुंदर ।

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  3. बेहतरीन प्रस्तुति

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  4. बेहतरीन , लाज़बाब रचना ,सादर नमस्कार

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  5. बहुत सुन्दर, सरस मनभावनी सी....
    वाह!!!

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  6. आप सभी का हृदय से आभार

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  7. बेहतरीन रचना । सुन्दर प्रस्तुति । हार्दिक आभार ।

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  8. बहुत सुन्दर

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