चित्र-साभार गूगल |
एक प्रेमगीत- सात रंग का छाता बनकर
सात रंग का
छाता बनकर
कड़ी धूप में तुम आती हो ।
मौसम के
अलिखित गीतों को
पंचम सुर-लय में गाती हो ।
जब सारा
संसार हमारा
हाथ छोड़कर चल देता है,
तपते हुए
माथ पर तेरा
हाथ बहुत सम्बल देता है,
आँगन में
हो रात-चाँदनी ,
चौरे पर दिया -बाती हो ।
कभी रूठना
और मनाना
इसमें भी श्रृंगार भरा है,
बिजली
मेघों की गर्जन से
हरियाली से भरी धरा है,
बार-बार
पढ़ता घर सारा ,
तुम तो एक सगुन पाती हो ।
भूखी-प्यासी
कजरी गैया
पल्लू खींचे, तुम्हें पुकारे,
माथे पर
काजल का टीका
जादू,टोना,नज़र उतारे,
सबकी प्यास
बुझाने में तुम
स्वयं नदी सी हो जाती हो ।
चित्र-साभार गूगल |
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत सरस और सुंदर ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन , लाज़बाब रचना ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सरस मनभावनी सी....
ReplyDeleteवाह!!!
सुंदर रचना
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार
ReplyDeleteबेहतरीन रचना । सुन्दर प्रस्तुति । हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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