चित्र -गूगल से साभार |
सधे हुए
होठों को
बाँसुरी बजाने दो |
मोरपंख
रत्नजड़ित
मुकुट पे सजाने दो |
जीवन भर
विष पीकर
मीरा ने पद गाये ,
जन्मों के
अन्धे हम
सूरदास कहलाये ,
उभर रहीं
मन में जो
छवियाँ ,वो आने दो |
द्वापर में
कृष्ण हुए
त्रेता में राम हुए ,
सीता के
संग कभी ,
राधा के नाम हुए ,
हे भटके मन
मुझको
वृन्दावन जाने दो |
तुम तो
हो निराकार
हो निराकार
सृष्टि का सृजन तुमसे ,
ऋषियों का
योग- ज्ञान
प्रेम का मिलन तुमसे ,
मुझको भी
प्रेम और
भक्ति के खजाने दो |
हे प्रभु तुम
कालपुरुष !
और हम खिलौने हैं ,
हम तेरे
मस्तक पर
सिर्फ़ एक दिठौने हैं ,
श्रद्धा के
फूलों से
जन्मदिन मनाने दो |
चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
अहा हा -- मन तृप्त हुआ इसे पढकर।
ReplyDeleteजीवन भर
ReplyDeleteविष पीकर
मीरा ने पद गाये ,
जन्मों के
अन्धे हम
सूरदास कहलाये ,
उभर रहीं
मन में जो
छवियाँ ,वो आने दो |
Nihayat sundar panktiyan hain!
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभ कामनाएं...ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, मनोहारी गीत ....जन्माष्टमी के पावन पर्व की शुभकामनायें ....
ReplyDeleteभक्तिमयी रचना, पढ़वाने का आभार।
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