चित्र -गूगल से साभार |
हाथों में हाथ लिए दूर तलक जाता है
बारिश में
छत होता
तेज धूप ,छाता है |
हाथों में
हाथ लिए
दूर तलक जाता है |
मीत मेरा
फूलों की खुशबू है
दरपन है ,
जीवन की
खुली हुई डायरी
घर -आंगन है ,
जीत -हार
दोनों में
कौड़ियाँ बिछाता है |
जब -जब
सम्बन्धों की
डोर कहीं टूटे ,
साथ -साथ
चले कोई
और साथ छूटे ,
ऐसे में
आँखों को
स्वप्न से सजाता है |
कुट्टी हो
तब मिलता
झील के किनारे ,
गुस्से में
पानी में
कंकरिया मारे ,
फिर भी
हम डूबें तो
तैरकर बचाता है |
दो
टूटी हुई छतों की पीड़ा
टूटी हुई छतों की पीड़ा
अपनी इच्छा से
से ये बादल
सौ -सौ धार बरसते हैं |
टूटी हुई
छतों की पीड़ा
मौसम कहाँ समझते हैं |
सावन -भादों में
भी रहते कितने
पर्वत प्यासे ,
हरी -भरी
घाटी को देखें
परती -चौमासे ,
सबकी बात
कहाँ सुनते ये
काले मेघ घुड़कते हैं |
मन खजुराहो
देह अजंता
मौसम आग लगाये ,
देह तोड़ती
पुरवा मन में
सौ -सौ राग जगाये ,
इन्द्रधनुष में
खोकर हम भी
कितने गीत सिरजते हैं |
भरे ताल में
कँवल -कँवल पे
भौरों की मनमानी ,
मेहंदी रची
हथेली लेकर
खिली रात की रानी ,
यादों की
जमीन पर खिलकर
सार्थक प्रस्तुति ....
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार गीत ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बेहतरीन रचनायें...
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ।
ReplyDeleteदोनों गीत मन को बहुत भाए।
ReplyDeleteअपनी इच्छा से
ReplyDeleteसे ये बादल
सौ-सौ धार बरसते हैं ।
टूटी हुई
छतों की पीड़ा
मौसम कहाँ समझते हैं ।
दोनों गीत बहुत ही सुंदर।
शब्दों और भावों का सुंदर समन्वय।