चित्र -गूगल से साभार |
कहाँ बादल के टुकड़े रेत के टीलों में होते हैं
सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में
दिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं
जरा सा वक्त है बैठो मेरे अशआर तो सुन लो
मोहब्बत के फ़साने तो कई रीलों में होते हैं
ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं
शहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम
हरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं
हम इक मजदूर हैं प्यासे ,हमें पानी नहीं मिलता
हमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं
कहानी में ही बस राजा गरीबों से मिला करते
हकीकत में तो केवल राम ही भीलों में होते है
खण्डहरों का भी एक माज़ी इन्हें नफ़रत से मत देखो
तिलस्मी तख़्त -सिंहासन इन्ही टीलों में होते हैं
ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
ReplyDeleteकमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं
बहुत सुंदर ग़ज़ल.....
खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteकहानी में ही बस राजा गरीबों से मिला करता
ReplyDeleteहकीकत में तो केवल राम ही भीलों में होते है
लाजवाब बिम्ब!
हम एक मजदूर हैं प्यासे ,हमें पानी नहीं मिलता
ReplyDeleteहमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं
वाह
इस एक शेर ने मन से पता नहीं क्या खींच लिया
जितनी तारीफ़ करून कम है
आपने एक वर्ग विशेष का दर्द सदा बयानी के साथ जिस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है, कम ही देखने, सुनने, पढ़ने को मिलता है
सुन्दर बिम्ब में बहुत सुन्दर गजल.
ReplyDeleteक्या बात है तुषार जी, बेहतर गजल लिखी है-
ReplyDeleteहम मजदूर हैं प्यासे हमें पानी नहीं मिलता
हमारी प्यास के चर्चे तो तहसीलों में होते हैं.
बहुत खूब, बधाई स्वीकार करें.
santosh chaturvedi.
खण्डहरों का भी एक माज़ी इन्हें नफ़रत से मत देखो
ReplyDeleteतिलस्मी तख़्त -सिंहासन इन्ही टीलों में होते हैं
दाद देते हैं आपके जज्ब्बातों को , विचार प्रवाह को ,सम्यक सुविचारों को प्रकट करने काअनोखा अंदाज .... प्रभावित करता है ...../ शुभकामनायें जी/
बहुत खुबसूरत और उम्दा गजल ..
ReplyDeleteजरा सा वक्त है बैठो मेरे अशआर तो सुन लो
ReplyDeleteमोहब्बत के फ़साने तो कई रीलों में होते हैं
Excellent ghazal !
.
jara sa vakt hai baitho, mere ashrar to sun lo. kya baat hai.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना।
ReplyDeleteसफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में
ReplyDeleteदिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं ...
सच है ... लाजवाब और गज़ब का शेर है ... दिलों की दूरियां नहीं मिट पाती ... लाजवाब गज़ल ..
सफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में,
ReplyDeleteदिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं .
लाजवाब लाजवाब लाजवाब.
बहुत सुंदर ग़ज़ल.
प्रिय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
आपकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल दो दिन में कई बार पढ़ चुका हूं -
ये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
कमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं
वाकई बेहतरीन ग़ज़ल , …एक एक शे'र पर फ़िदा हूं
आप सच में नवगीत , गीत ,और ग़ज़लें बहुत परिपक्व लय में लिखते हैं …
# मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है
मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
हमारी प्यास के "बस" चर्चे तो तहसीलों में होते हैं!
ReplyDeleteएक उम्दा रचना
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल, तहसीलों और भीलों वाले काफ़ियों का चयन और उन काफ़ियों से तालमेल बिठाता अप्रतिम कथन इस ग़ज़ल को एक यादगार ग़ज़ल बनाने में समर्थ है
ReplyDeleteसफ़र में दूरियां अब तो सिमट जाती हैं लम्हों में
ReplyDeleteदिलों के फासले लेकिन कई मीलों में होते हैं
क्या बात कही है, तुषार जी।
बहुत बढ़िया, बहुत सुंदर।
बधाई।
ye hui n kuch baat...subhanallah !
ReplyDeleteये गमले, बोनसाई छोड़कर आओ तो दिखलायें
ReplyDeleteकमल के फूल कितने रंग के झीलों में होते हैं
शहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम
हरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं
बहुत सुंदर... और एहसास से भरपूर ...
शुभकामनाएँ!
आप सभी का विशेष आभार मेरी इस गज़ल को पढ़ने के लिए |
ReplyDeleteआप सभी का विशेष आभार मेरी इस गज़ल को पढ़ने के लिए |
ReplyDeleteशहर से दूर लम्बी छुट्टियों के बीच तनहा हम
ReplyDeleteहरे पेड़ों ,तितलियों और अबाबीलों में होते हैं
waah ... bilkul sach