चित्र -गूगल से साभार |
सूखा हो
या बाढ़
मौसमों के आधीन रहे |
मेघदूत
अब खेतों की
हरियाली छीन रहे |
परजा का दुःख
भूले आये कितने
राजा -रानी ,
आदमखोर
व्यवस्था की
कुछ बदली नहीं कहानी ,
आजादी के
सपने
कागज पर रंगीन रहे |
इंदर राजा
राजसभा में
मुजरे देख रहे ,
मौन सभासद
अपनी -अपनी
रोटी सेंक रहे ,
हम महलों के
कचराघर में
कूड़ा बीन रहे |
आंधी -पानी
तेज हवा के
झोंकों से लड़ते ,
हम हारिल
पंजे में सूखी
टहनी ले उड़ते ,
आराकश
बस पेड़
बस पेड़
काटने में तल्लीन रहे |
मेले -हाट
प्रदर्शनियाँ सब
शहरों के हिस्से ,
भूखे पेट
कहाँ तक सुनते
अम्मी के किस्से ,
अपनी दुआ
कुबूल कहाँ
उनकी आमीन रहे |
हम महलों के
ReplyDeleteकचराघर में
कूडे बीन रहे .
ग़ज़ब की लयात्मकता,भाव और कथ्य.
बधाई इस सुन्दर गीत के लिए.
मेले -हाट
ReplyDeleteप्रदर्शनियाँ सब
शहरों के हिस्से ,
भूखे पेट
कहाँ तक सुनते
अम्मी के किस्से ,
अपनी दुआ
कुबूल कहाँ
उनकी आमीन रहे |
एक सम्यक और प्रभावशाली रचना के लिए आपका आभार
bahut hi sundar rachna
ReplyDeleteमेले -हाट
ReplyDeleteप्रदर्शनियाँ सब
शहरों के हिस्से ,
भूखे पेट
कहाँ तक सुनते
अम्मी के किस्से ,
अपनी दुआ
कुबूल कहाँ
उनकी आमीन रहे |
वाह ....बहुत बढ़िया....पंक्तियाँ बेमिसाल हैं...
परजा का दुःख
ReplyDeleteभूले आये कितने
राजा -रानी ,
आदमखोर
व्यवस्था की
कुछ बदली नहीं कहानी ,
आजादी के
सपने
कागज पर रंगीन रहे |
So true !
Mesmerizing creation !
.
यथार्थ और प्रासंगिक रचना ...
ReplyDeleteआजादी के
ReplyDeleteसपने
कागज पर रंगीन रहे |
सच्ची सटीक बात...लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें.
नीरज
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक शब्द दिल को छू गई! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत सुन्दर...
ReplyDeletesundar rachna...
ReplyDeleteआंधी -पानी
ReplyDeleteतेज हवा के
झोंकों से लड़ते ,
हम हारिल
पंजे में सूखी
टहनी ले उड़ते ,
आराकश
बस पेड़
काटने में तल्लीन रहे |
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteमानवीय मूल्यों के अवमूल्यन को मौसमों के अधीन हो रहे बिम्ब पर प्रवाहित यह गीत मन को बहुत झकझोड़ता है।
ReplyDeleteइंदर राजा
ReplyDeleteराजसभा में
मुजरे देख रहे ,
मौन सभासद
अपनी -अपनी
रोटी सेंक रहे ,
हम महलों के
कचराघर में
कूडे बीन रहे |
तुषार जी लाजवाब कर दिया आपने
laajavaa
आराकश
ReplyDeleteबस पेड़
काटने में तल्लीन रहे |
बहुत ही शानदार नवगीत तुषार जी| बधाई|
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !
आंधी -पानी
ReplyDeleteतेज हवा के
झोंकों से लड़ते ,
हम हारिल
पंजे में सूखी
टहनी ले उड़ते ,
आराकश
बस पेड़
काटने में तल्लीन रहे ...
Excellent creation ! nicely expressed .
.
आंधी-पानी
ReplyDeleteतेज हवा के
झोंकों से लड़ते
हम हारिल
पंजे में सूखी
टहनी ले उड़ते
आराकश
बस पेड़
काटने में तल्लीन रहे ।
भावपूर्ण नवगीत कुछ संदेश भी दे रहा है।
बढ़िया रचना।
आजादी के
ReplyDeleteसपने
कागज पर रंगीन रहे |
सहज भाषा में देश पर हावी मौसम का बयां...अच्छा लगा...
इंदर राजा
ReplyDeleteराजसभा में
मुजरे देख रहे ,
मौन सभासद
अपनी -अपनी
रोटी सेंक रहे ,
हम महलों के
कचराघर में
कूड़ा बीन रहे |
bahut badhiyaa
समकालीनता लबरेज है कविता में
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
ReplyDeletehttp://seawave-babli.blogspot.com