Saturday, 1 June 2024

एक गीत -गर्म तवे सी धरती

 

चित्र साभार गूगल 

एक सामयिक गीत 

आज 10जून को दैनिक जागरण 
में यह गीत प्रकाशित 



गर्म तवे सी 
धरती 
पत्ते -फूल सभी मुरझाए.
इस दुरूह 
मौसम में 
कोई राग मल्हार सुनाए.

गाद भरी 
नदियों झीलों में 
सिर्फ नयन भर जल है,
अनियंत्रित 
विकास मौसम के 
साथ स्वर्ण मृग छल है,
जल विहीन 
बादल चातक की 
कैसे प्यास बुझाए.

पीपल, नीम 
उपेक्षित 
आँगन सजे बोनसाई,
क़ातिल 
लगने लगा 
सुहाना मौसम कैसे भाई,
भोर, साँझ 
दिन -रात 
एक सा पारा हमें रुलाए.

पंखा झलते 
उँटी, चम्बा 
औली, कुल्लू मनाली,
बरखा रानी 
की आभा से 
दसों दिशाएं खाली,
मैना 
सूखी हुई डाल पर 
अपनी पीठ खुजाए.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 03 जून 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आपका आदरणीय जोशी ji

      Delete
  3. सामायिक विषय पर सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. मार्मिक रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन

      Delete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक गीत -गा रहा होगा पहाड़ों में कोई जगजीत

  चित्र साभार गूगल एक गीत -मोरपँखी गीत  इस मारुस्थल में  चलो ढूँढ़े  नदी को मीत. डायरी में  लिखेंगे  कुछ मोरपँखी गीत. रेत में  पदचिन्ह होंगे ...