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| चित्र साभार गूगल | 
एक सामयिक गीत
गर्म तवे सी 
धरती 
पत्ते -फूल सभी मुरझाए.
इस दुरूह 
मौसम में 
कोई राग मल्हार सुनाए.
गाद भरी 
नदियों झीलों में 
सिर्फ नयन भर जल है,
अनियंत्रित 
विकास मौसम के 
साथ स्वर्ण मृग छल है,
जल विहीन 
बादल चातक की 
कैसे प्यास बुझाए.
पीपल, नीम 
उपेक्षित 
आँगन सजे बोनसाई,
क़ातिल 
लगने लगा 
सुहाना मौसम कैसे भाई,
भोर, साँझ 
दिन -रात 
एक सा पारा हमें रुलाए.
पंखा झलते 
उँटी, चम्बा 
औली, कुल्लू मनाली,
बरखा रानी 
की आभा से 
दसों दिशाएं खाली,
मैना 
सूखी हुई डाल पर 
अपनी पीठ खुजाए.
कवि जयकृष्ण राय तुषार 
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| चित्र साभार गूगल | 

 
 
 
 
 
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 03 जून 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका आदरणीय जोशी ji
Deleteसामायिक विषय पर सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteमार्मिक रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
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