चित्र साधार गूगल |
एक ताज़ा सामयिक गीत
केरल से
उड़ या
मेघा बंगाल से.
खुशबू वाले
फूल
झर रहे डाल से.
हांफ रहे
हैँ हिरण
राम क्या मौसम है,
जंगल में
चिड़ियों का
कलरव बेदम है,
हंस
पियासे
झाँक रहे नभ ताल से.
पारो पोछे
सुबह
पसीना पल्लू से,
हवा गरम
आ रही
श्रीनगर, कुल्लू से,
मोर मोरनी
थके
लग रहा चाल से.
चम्पा, बेला
गुड़हल
मन से खिले नहीं,
इस मौसम
कपोत के
जोड़े मिले नहीं,
उड़ी
इत्र की महक
सभी रुमाल से.
कवि जयकृष्ण राय तुषार
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