ग़ज़ल
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चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
जब कभी थककर के लौटा गोद में सर धर दिया
माँ ने अपने जादुई हाथों से चंगा कर दिया
फूल, खुशबू, तितलियाँ, नदियाँ, परी सब रंग थे
नींद में आँखों में ऐसा ख़्वाब किसने भर दिया
मौन रहकर भी किसी के दिल का किस्सा पढ़ लिए
आँखों से आँखों को उसने सब इशारा कर दिया
बर्फबारी, अग्निवर्षा, धूप, ओले, आधियाँ
मौसमों ने बस हरे पेड़ों को सारा डर दिया
नर्मदा, गिरिनार, सिद्धाश्रम है संतों की जगह
जिसको जैसी है जरूरत उसको वैसा घर दिया
जो भी माँगा दे दिए परिणाम की चिंता न थी
देवताओं ने हमेशा राक्षसों को वर दिया
पाँव हिरणों को मछलियों को नदी का जल दिया
आसमाँ छूना था जिसको बस उसी को पर दिया
बांसुरी और शंख होठों पर सजाकर देखिए
वक़्त ने बेज़ान चीजों को भी मीठा स्वर दिया
कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |